भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अम्मा / शिव रावल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:46, 3 अक्टूबर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिव रावल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन मुझे बहुत याद आई अम्मा
घड़े के पानी में झाँका तो नजर आई अम्मा

जो स्वेटर की तरह बचाती थी मुझे
जिंदगी की सर्द हवाओं से
वो मेरे मामा की माँ जाई अम्मा

मेरी हल्की-सी नींद पर उसकी आँखें खुल जाती थी
इतनी कच्ची नींद भला कहाँ से पाई अम्मा

मेरे मन के अंकुर को अपने लाड़ों से सीँचा
रातें देतीं हैं आज लोरिओं की दुहाई अम्मा
एक दिन मुझे बहुत याद आई अम्मा