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अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की बहुचर्चित—कृति ‘प्रिय प्रवास’ खड़ी बोली का पहला महाकाव्य है। साहित्य के तीन महत्त्वपूर्ण—भारतेंदु, द्विवेदी व छायावादी-युगों में फैले विस्तृत रचनाकाल के कारण वे हिंदी-कविता के विकास में नींव के पत्थर माने जाते हैं।
हरिऔध जी ने नाटक व उपन्यास लिखे, आलोचनात्मक लेखन किया और बाल-साहित्य भी रचा किंतु ख्यात कवि के रूप में हुए। उन्होंने संस्कृति-छंदों का हिंदी में सफलतम प्रयोग किया।