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अरमां भी मचलते है / प्रेम कुमार "सागर"

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किसी की बंद आँखों में अभी भी ख्वाब पलते है
'मोहब्बत' की फ़ज़ा में साए चुपके से टहलते है |

'इश्क' की तपिश,पत्थर पिघलकर मोम हो जाए
बबूल की शाख पर भी प्यारे यूँ ही आम फलते है |

मै जलती आग में कूदा, तभी सावन वहाँ बरसा
आशिक की खिदमत में खुदा भी साथ चलते है |

जरा सोती हुई इन पलकों पर तुम होठ रखो तो
मेरी आँखे बता देगी, कि अरमां भी मचलते है |

छलकते नूर से पूछो, जिसे तुम अश्क कहते हो
कि कैसे 'सागर' में भी लहरों के जज्बात पलते है |