भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अरमान मुद्दतों में निकलता है दीद का / मेला राम 'वफ़ा'
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 11 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेला राम 'वफ़ा' |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अरमान मुद्दतों में निकलता है दीद का
दिलदार बन के हो गये तुम चांद ईद का
हो जाते साथ आप भी दो चार दस क़दम
ले जा रहे हैं लोग जनाज़ा शहीद का
ठोकर को इतेफाक न गर्दानिए-हुज़ूर
रुक जाइए मज़ार यही है शहीद का
कद्रे मिटाई जाती हैं एहले-क़दीम की
आईन बन रहा है निज़ामे-जदीद का
रुख़ से उठाओ पर्दा कि तस्कीं-पज़ीर हो
दिल में तड़प रहा है इक अरमान दीद का
तूफ़ाने-यास की हैं यही शिद्दतें अगर
रौशन कहां चराग़ रहेगा उमीद का
होती है जब बसर तिरी सुहबत में रात दिन
हर रात थी बरात की हर दिन था ईद का
जमने दिया न गर्मिए-उल्फ़त ने तेग़ पर
ठंडा हुआ न खून तुम्हारे शहीद का।