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"अल्लाह की जात-अल्लाह के रंग / अमित कल्ला" के अवतरणों में अंतर

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केवडे के फूल
 
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उस अपार नूर का
 
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चुग्गा चुग जाते
 
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अकह को कहकर
 
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अगह को गहकर
 
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गनिमते गिनते हैं
 
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गहरी रेत में
 
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कितना पकाया जाता
 
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भरी-भरी आँखों के सामने ही
 
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बाहर निकल
 
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पी जाते
 
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अमर बूटी
 
अमर बूटी
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मीठा महारस
 
मीठा महारस
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तभी तो
 
तभी तो
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हर इक
 
हर इक
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चेहरे को
 
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ज्यों की त्यों
 
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अल्लाह की जात
 
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अल्लाह के रंग
 
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का
 
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इसक
 
इसक
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की
 
की
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19:22, 8 सितम्बर 2009 का अवतरण

इसक

की

कुछ आहट

जरुर लगती है



जिधर देखो

असंख्य दृश्य

अपने सा

अर्थ देते



पढ़-पढ़कर

नन्हे निवेदन

केवडे के फूल

उस अपार नूर का

चुग्गा चुग जाते



अकह को कहकर

अगह को गहकर

कैसी कैसी

गनिमते गिनते हैं



दबा-दबाकर

गहरी रेत में

कितना पकाया जाता

भरी-भरी आँखों के सामने ही

बाहर निकल

पी जाते

अमर बूटी

मीठा महारस



तभी तो

हर इक

चेहरे को

ज्यों की त्यों

अल्लाह की जात

अल्लाह के रंग

का

पता देते हैं


इसक

की