भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अश्कों से आंखों का परदा टूट गया / तुफ़ैल चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:34, 28 फ़रवरी 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अश्कों से आंखों का परदा टूट गया
प्यार का आख़िर कच्चा धागा टूट गया

ख़ामोशी से बेटे को मिट्टी दे दी
अंदर-अंदर लेकिन बूढ़ा टूट गया

सोचा था सच की ख़ातिर जां दे दूंगा
मेरा मुझसे आज भरोसा टूट गया

पर्वत की बांहों में जोश अलग ही था
मैदानों में आकर दरिया टूट गया

तेरी सख़ावत भी किस काम की है दाता
ऐसा सिक्का फेंका कासा टूट गया

नई बहू से इतनी तब्दीली आई
भाई से भाई का रिश्ता टूट गया

ग़ज़लों के आंसू क्यों अब तक बहते हैं
मेरा उसका रिश्ता कब का टूट गया