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अष्टम प्रकरण / श्लोक 1-4 / मृदुल कीर्ति
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(अष्टम प्रकरण / श्लोक 1-6 / मृदुल कीर्ति से पुनर्निर्देशित)
कुछ त्यागता कुछ ग्रहण करता, मन दुखित हर्षित कभी,
यही भाव मन के विकार , बंधन युक्त हैं, बंधित सभी.--------१
न ही ग्रहण, न ही त्याग , दुःख से परे मन मोक्ष है,
एक रस मन की अवस्था, सर्वदा निरपेक्ष है.-----२
मन लिप्त होता जब कहीं, तो बंध बंधन हेतु है,
निर्लिप्त होता जब वही मन , मोक्ष का मन सेतु है.-----३
"मैं" भाव ही बंधन महत, " मैं " का हनन ही मोक्ष है,
त्याग और ग्रहण से हो परे मन, तब मनन निरपेक्ष है.----------४