भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असबाब से जहाँ के कुछ अब पास गो नहीं / सौदा

Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:05, 11 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} category: ग़ज़ल <poem> असबाब से जहाँ के कुछ अब पास ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

असबाब से जहाँ के कुछ अब पास गो1 नहीं
ये फ़िक्र तो नहीं कि ये है और वो नहीं

गो मुंतज़र2 दुआ का हमारे है अब क़ुबूल
दस्तो-दहन3 पसारिए, अपनी ये ख़ू4 नहीं

बाँधा हम इस चमन में अगर आशियाँ तो क्या
है गुल में आबो-रंग, वफ़ा की तो बू नहीं

आँखें तो ऐसी ख़ल्क न होईं5 न होयेंगी
पर चाहिए कि उनमें मुरव्वत हो, सो नहीं

सरगोशी6 पर मिरी तू बर-आशुफ़्ता7 क्यों हुआ
मैं दर्दे-दिल कहा है न, कुछ और तो नहीं

जो चाहें यार हाल से दें मेरे इश्तहार
मैं दर्दे-दिल कहा है न, कुछ और तो नहीं

'सौदा' न करते काश तिरा वस्फ़8 पेशे-यार9
अब हमको उससे आँख मिलाने का रू10 नहीं

शब्दार्थ:
1. हालाँकि 2. प्रतीक्षक 3. हाथ और मुँह 4. आदत 5. नहीं रची गयीं 6. फुसफुसाहट 7. नाराज़ 8. गुणगान 9. प्रियतम के सामने 10. हौसला