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अेक सौ चौंतीस / प्रमोद कुमार शर्मा

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म्हारै मून मांय
के ठा कांई है!
झांई है साच री हळकी-सी स्यात्
सूरज री तलास मांय हुवै ज्यूं परभात

अैड़ी'ज कोई ओळी है म्हारी कविता री
बाट जावै भीलणी ज्यूं राम अर सीता री

उणी ढाळ :
कोई म्हारो मून तोड़ो
सबद री सून तोड़ो
भाखा नैं दरकार है फेरूं अेक गीता री।