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"आँखों-आँखों मुस्कुराना खूब है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=कुछ और गुलाब  / गुलाब खंडेलवाल
 
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आँखों-आँखों मुस्कुराना खूब है!
 
प्यार यह हमसे छिपाना खूब है!
 
 
एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
 
लौट जाने का बहाना खूब है!
 
 
बेकहे आये, चले भी बेकहे
 
खूब था आना, ये जाना खूब है!
 
 
हर क़दम पर, हर घड़ी हो साथ-साथ
 
सामने फिर भी न आना खूब है!
 
 
भूल है अपना समझ लेना गुलाब
 
रंग उन आँखों में, माना, खूब है!
 
<poem>
 

01:15, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण