भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह =   
 
|संग्रह =   
 
}}  
 
}}  
 +
{{KKCatGhazal}}
 +
{{KKVID|v=OITnFABWzo0}}
 +
<poem>
 +
आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
 +
उठता तो है घटा-सा बरसता नहीं धुआँ
  
 +
चूल्हे नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
 +
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ
  
आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ <br>
+
आँखों के पोंछने से लगा आँच का पता
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ <br>
+
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ  
  
चूल्हे
+
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं  
नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई <br>
+
मेहमाँ ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ <br>
+
</poem>
 
+
आँखों से पोंछने से लगा आँच का पता <br>
+
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ <br>
+
 
+
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं <br>
+
मेहमान ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ<br>
+

19:38, 10 जून 2020 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा-सा बरसता नहीं धुआँ

चूल्हे नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ

आँखों के पोंछने से लगा आँच का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ