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आँखों में पीड़ा / कविता भट्ट

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1
आँखों में पीड़ा
उनकी ही मिली ना
ताउम्र खपी।
2
मिटते गए
रोटी खोजते रहे
उनको खोया ।
3
लाली का डेरा
आँखों की सफेदी को
दु:खो ने घेरा॥
4
खोजते रहे
बोल मरहम के
मरते गए ।
5
उसने खींचा
प्रेम-हस्त अपना
जिसको सींचा ।
6
महका किए
किताबों के पन्नों में
रखे गुलाब ।
7
प्रेमी मनाया
उसने सदा इसे
बेबसी कहा॥
8
खोजा उनके
नयनों में स्वयं को
खुद ही डूबे ।
9
उमड़े रेले
उनकी सुधियों के
छलिया हैं जो
-0-