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"आँसू / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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लेखक: [[जयशंकर प्रसाद]]
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[[Category:लम्बी रचना]]
  
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====इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ====
 
+
* [[आँसू / जयशंकर प्रसाद / पृष्ठ १]]
 
+
* [[आँसू / जयशंकर प्रसाद / पृष्ठ २]]
<br />
+
* [[आँसू / जयशंकर प्रसाद / पृष्ठ ३]]
इस करुणा कलित हृदय में<br />
+
* [[आँसू / जयशंकर प्रसाद / पृष्ठ ४]]
अब विकल रागिनी बजती<br />
+
* [[आँसू / जयशंकर प्रसाद / पृष्ठ ५]]
क्यों हाहाकार स्वरों में<br />
+
* [[आँसू / जयशंकर प्रसाद / पृष्ठ ६]]
वेदना असीम गरजती?<br />
+
<br />
+
मानस सागर के तट पर<br />
+
क्यों लोल लहर की घातें<br />
+
कल कल ध्वनि से हैं कहती<br />
+
कुछ विस्मृत बीती बातें?<br />
+
<br />
+
आती हैं शून्य क्षितिज से <br />
+
क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी<br />
+
टकराती बिलखाती-सी<br />
+
पगली-सी देती फेरी?<br />
+
<br />
+
<br />
+
क्यें व्यथित व्योमगंगा-सी<br />
+
छिटका कर दोनों छोरें<br />
+
चेतना तरंगिनी मेरी<br />
+
लेती हैं मृदल हिलोरें?<br />
+
<br />
+
बस गयी एक बस्ती हैं<br />
+
स्मृतियों की इसी हृदय में<br />
+
नक्षत्र लोक फैला है<br />
+
जैसे इस नील निलय में।<br />
+
<br />
+
ये सब स्फुलिंग हैं मेरी<br />
+
इस ज्वालामयी जलन के<br />
+
कुछ शेष चिह्न हैं केवल<br />
+
मेरे उस महा मिलन के।<br />
+
<br />
+
शीतल ज्वाला जलती हैं<br />
+
ईधन होता दृग जल का<br />
+
यह व्यर्थ साँस चल-चल कर<br />
+
करती हैं काम अनिल का।<br />
+
<br />
+
बाड़वज्वाला सोती थी<br />
+
इस प्रणयसिन्धु के तल में<br />
+
प्यासी मछली-सी आँखें<br />
+
थी विकल रूप के जल में।<br />
+
<br />
+
बुलबुले सिन्धु के फूटे<br />
+
नक्षत्र मालिका टूटी<br />
+
नभ मुक्त कुन्तला धरणी<br />
+
दिखलाई देती लूटी।<br />
+
<br />
+
छिल छिल कर छाले फाड़े<br />
+
मल मल कर मृदुल चरण से<br />
+
धुल धुल कर बह रह जाते <br />
+
आँसू करुणा के कण से।<br />
+
<br />
+
इस विकल वेदना को ले<br />
+
किसने सुख को ललकारा <br />
+
वह एक अबोध अकिंचन<br />
+
बेसुध चैतन्य हमारा।<br />
+
<br />
+
अभिलाषाओं की करवट<br />
+
फिर सुप्त व्यथा का जगना<br />
+
सुख का सपना हो जाना<br />
+
भींगी पलकों का लगना।<br />
+
<br />
+
इस हृदय कमल का घिरना<br />
+
अलि अलकों की उलझन में<br />
+
आँसू मरन्द का गिरना<br />
+
मिलना निश्वास पवन में।<br />
+
<br />
+
मादक थी मोहमयी थी<br />
+
मन बहलाने की क्रीड़ा<br />
+
अब हृदय हिला देती है<br />
+
वह मधुर प्रेम की पीड़ा।<br />
+
<br />
+
सुख आहत शान्त उमंगें<br />
+
बेगार साँस ढोने में<br />
+
यह हृदय समाधि बना हैं<br />
+
रोती करुणा कोने में।<br />
+
<br />
+
चातक की चकित पुकारें<br />
+
श्यामा ध्वनि सरल रसीली<br />
+
मेरी करुणार्द्र कथा की<br />
+
टुकड़ी आँसू से गीली।<br />
+
<br />
+
अवकाश भला हैं किसको,<br />
+
सुनने को करुण कथाएँ<br />
+
बेसुध जो अपने सुख से<br />
+
जिनकी हैं सुप्त व्यथाएँ<br />
+
<br />
+
जीवन की जटिल समस्या <br />
+
हैं बढ़ी जटा-सी कैसी<br />
+
उड़ती हैं धूल हृदय में<br />
+
किसकी विभूति हैं ऐसी?<br />
+
<br />
+
जो घनीभूत पीड़ा थी<br />
+
मस्तक में स्मृति-सी छायी<br />
+
दुर्दिन में आँसू बनकर<br />
+
वह आज बरसने आयी।<br />
+
<br />
+
मेरे क्रन्दन में बजती<br />
+
क्या वीणा, जो सुनते हो<br />
+
धागों से इन आँसू के<br />
+
निज करुणापट बुनते हो।<br />
+
<br />
+
रो-रोकर सिसक-सिसक कर<br />
+
कहता मैं करुण कहानी<br />
+
तुम सुमन नोचते सुनते<br />
+
करते जानी अनजानी।<br />
+
<br />
+
मैं बल खाता जाता था<br />
+
मोहित बेसुध बलिहारी<br />
+
अन्तर के तार खिंचे थे<br />
+
तीखी थी तान हमारी<br />
+
<br />
+
झंझा झकोर गर्जन था<br />
+
बिजली थीस नीरदमाला,<br />
+
पाकर इस शून्य हृदय को<br />
+
सबने आ डेरा डाला।<br />
+
<br />
+
घिर जाती प्रलय घटाएँ<br />
+
कुटिया पर आकर मेरी<br />
+
तम चूर्ण बरस जाता था<br />
+
छा जाती अधिक अँधेरी।<br />
+
<br />
+
बिजली माला पहने फिर<br />
+
मुसक्याता था आँगन में<br />
+
हाँ, कौन बरस जाता था<br />
+
रस बूँद हमारे मन में?<br />
+
<br />
+
तुम सत्य रहे चिर सुन्दर!<br />
+
मेरे इस मिथ्या जग के<br />
+
थे केवल जीवन संगी<br />
+
कल्याण कलित इस मग के।<br />
+
<br />
+
कितनी निर्जन रजनी में<br />
+
तारों के दीप जलाये<br />
+
स्वर्गंगा की धारा में<br />
+
उज्जवल उपहार चढायें।<br />
+
<br />
+
गौरव था , नीचे आये<br />
+
प्रियतम मिलने को मेरे<br />
+
मै इठला उठा अकिंचन<br />
+
देखे ज्यों स्वप्न सवेरे।<br />
+
<br />
+
मधु राका मुसक्याती थी<br />
+
पहले देखा जब तुमको<br />
+
परिचित से जाने कब के<br />
+
तुम लगे उसी क्षण हमको।<br />
+
<br />
+
परिचय राका जलनिधि का<br />
+
जैसे होता हिमकर से<br />
+
ऊपर से किरणें आती<br />
+
मिलती हैं गले लहर से।<br />
+
<br />
+
मै अपलक इन नयनों से<br />
+
निरखा करता उस छवि को<br />
+
प्रतिभा डाली भर लाता<br />
+
कर देता दान सुकवि को।<br />
+
<br />
+
निर्झर-सा झिर झिर करता<br />
+
माधवी कुंज छाया में<br />
+
चेतना बही जाती थी<br />
+
हो मन्त्र मुग्ध माया में।<br />
+
<br />
+
पतझड़ था, झाड़ खड़े थे<br />
+
सूखी-सी फूलवारी में<br />
+
किसलय नव कुसुम बिछा कर<br />
+
आये तुम इस क्यारी में।<br />
+
<br />
+
शशि मुख पर घूँघट डाले<br />
+
अंचल में चपल चमक-सी<br />
+
आँखों मे काली पुतली <br />
+
पुतली में श्याम झलक-सी।<br />
+
<br />
+
प्रतिमा में सजीवता-सी<br />
+
बस गयी सुछवि आँखों में<br />
+
थी एक लकीर हृदय में <br />
+
जो अलग रही लाखों में।<br />
+
<br />
+
माना कि रूप सीमा हैं<br />
+
सुन्दर!  तव चिर यौवन में<br />
+
पर समा गये थे, मेरे<br />
+
मन के निस्सीम गगन में।<br />
+
<br />
+
लावण्य शैल राई-सा<br />
+
जिस पर वारी बलिहारी<br />
+
उस कमनीयता कला की<br />
+
सुषमा थी प्यारी-प्यारी।<br />
+
<br />
+
बाँधा था विधु को किसने<br />
+
इन काली जंजीरों से<br />
+
मणि वाले फँणियों का मुख<br />
+
क्यों भरा हुआ हीरों से?<br />
+
<br />
+
काली आँखों में कितनी <br />
+
यौवन के मद की लाली<br />
+
मानिक मदिरा से भर दी<br />
+
किसने नीलम की प्याली?<br />
+
<br />
+
तिर रही अतृप्ति जलधि में<br />
+
नीलम की नाव निराली<br />
+
कालापानी वेला-सी<br />
+
हैं अंजन रेखा काली।<br />
+
<br />
+
अंकित कर क्षितिज पटी को<br />
+
तूलिका बरौनी तेरी<br />
+
कितने घायल हृदयों की<br />
+
बन जाती चुतर चितेरी।<br />
+
<br />
+
कोमल कपोल पाली में<br />
+
सीधी सादी स्मित रेखा<br />
+
जानेगा वही कुटिलता<br />
+
जिसमें भौं में बल देखा।<br />
+
<br />
+
विद्रुम सीपी सम्पुट में<br />
+
मोती के दाने कैसे<br />
+
हैं हंस न, शुक यह, फिर क्यो<br />
+
चुगने की मुद्रा ऐसे?<br />
+
<br />
+
विकसित सरजित वन-वैभव<br />
+
मधु-ऊषा के अंचल में<br />
+
उपहास करावे अपना<br />
+
जो हँसी देख ले पल में!<br />
+
<br />
+
मुख-कमल समीप सजे थे<br />
+
दो किसयल से पुरइन के<br />
+
जलबिन्दु सदृश ठहरे कब<br />
+
उन कानों में दुख किनके?<br />
+
<br />
+
थी किस अनंग के धनु की<br />
+
वह शिथिल शिंजिनी दुहरी<br />
+
अलबेली बाहुलता या<br />
+
तनु छवि सर की नव लहरी?<br />
+
<br />
+
चंचला स्नान कर आवे<br />
+
चंद्रिका पर्व में जैसी<br />
+
उस पावन तन की शोभा<br />
+
आलोक मधुर थी ऐसी!<br />
+
<br />
+
छलना थी, तब भी मेरा<br />
+
उसमें विश्वास घना था<br />
+
उस माया की छाया में<br />
+
कुछ सच्चा स्वयं बना था।<br />
+
<br />
+
वह रूप रूप ही केवल<br />
+
या रहा हृदय भी उसमें<br />
+
जड़ता की सब माया थी<br />
+
चैतन्य समझ कर मुझमें।<br />
+
<br />
+
मेरे जीवन की उलझन<br />
+
बिखरी थी उनकी अलकें<br />
+
पी ली मधु मदिरा किसने<br />
+
थी बन्द हमारी पलकें।<br />
+
<br />
+
ज्यों-ज्यों उलझन बढ़ती थी<br />
+
बस शान्ति विहँसती बैठी<br />
+
उस बन्धन में सुख  बँधता<br />
+
करुणा रहती थी ऐंठी।<br />
+
<br />
+
हिलते द्रुमदल कल किसलय<br />
+
देती गलबाँही डाली<br />
+
फूलों का चुम्बन, छिड़ती<br />
+
मधुप की तान निराली।<br />
+
<br />
+
मुरली मुखरित होती थी<br />
+
मुकुलों के अधर बिहँसते<br />
+
मकरन्द भार से दब कर<br />
+
श्रवणों में स्वर जा बसते।<br />
+
<br />
+
परिरम्भ कुम्भ की मदिरा<br />
+
निश्वास मलय के झोंके<br />
+
मुख चन्द्र चाँदनी जल से<br />
+
मैं उठता था मुँह धोके।<br />
+
<br />
+
थक जाती थी सुख रजनी<br />
+
मुख चन्द्र हृदय में होता<br />
+
श्रम सीकर सदृश नखत से<br />
+
अम्बर पट भींगा होता।<br />
+
<br />
+
सोयेगी कभी न वैसी<br />
+
फिर मिलन कुंज में मेरे<br />
+
चाँदनी शिथिल अलसायी<br />
+
सुख के सपनों से तेरे।<br />
+
<br />
+
लहरों में प्यास भरी है<br />
+
है भँवर पात्र भी खाली<br />
+
मानस का सब रस पी कर<br />
+
लुढ़का दी तुमने प्याली।<br />
+
<br />
+
किंजल्क जाल हैं बिखरे<br />
+
उड़ता पराग हैं रूखा<br />
+
हैं स्नेह सरोज हमारा<br />
+
विकसा, मानस में सूखा।<br />
+
<br />
+
छिप गयी कहाँ छू कर वे<br />
+
मलयज की मृदु हिलोरें<br />
+
क्यों घूम गयी हैं आ कर<br />
+
करुणा कटाक्ष की कोरें।<br />
+
<br />
+
विस्मृति हैं, मादकता हैं<br />
+
मूचर्छना भरी हैं मन में<br />
+
कल्पना रही, सपना था<br />
+
मुरली बजती निर्जन में।<br />
+
<br />
+
हीरे-सा हृदय हमारा<br />
+
कुचला शिरिष कोमल ने<br />
+
हिमशीतल प्रणय अनल बन<br />
+
अब लगा विरह से जलने।<br />
+
<br />
+
अलियों से आँख बचा कर<br />
+
जब कुंज संकुचित होते<br />
+
धुँधली संध्या प्रत्याशा<br />
+
हम एक-एक को रोते।<br />
+
<br />
+
जल उठा स्नेह, दीपक-सा,<br />
+
नवनीत हृदय था मेरा<br />
+
अब शेष धूमरेखा से <br />
+
चित्रित कर रहा अँधेरा।<br />
+
<br />
+
नीरव मुरली, कलरव चुप<br />
+
अलिकुल थे बन्द नलिन में<br />
+
कालिन्दी वही  प्रणय की<br />
+
इस तममय हृदय पुलिन में।<br />
+
<br />
+
कुसुमाकर रजनी के जो<br />
+
पिछले पहरों में खिलता<br />
+
उस मृदुल शिरीष सुमन-सा<br />
+
मैं प्रात धूल में मिलता।<br />
+
<br />
+
व्याकुल उस मधु सौरभ से<br />
+
मलयानिल धीरे-धीरे<br />
+
निश्वास छोड़ जाता हैं<br />
+
अब विरह तरंगिनि तीरे।<br />
+
<br />
+
चुम्बन अंकित प्राची का<br />
+
पीला कपोल दिखलाता<br />
+
मै कोरी आँख निरखता<br />
+
पथ, प्रात समय सो जाता।<br />
+
<br />
+
श्यामल अंचल धरणी का<br />
+
भर मुक्ता आँसू कन से<br />
+
छूँछा बादल बन आया<br />
+
मैं प्रेम प्रभात गगन से।<br />
+
<br />
+
विष प्याली जो पी ली थी<br />
+
वह मदिरा बनी नयन में<br />
+
सौन्दर्य पलक प्याले का<br />
+
अब प्रेम बना जीवन में।<br />
+
<br />
+
कामना सिन्धु लहराता<br />
+
छवि पूरनिमा थी छाई<br />
+
रतनाकर बनी चमकती<br />
+
मेरे शशि की परछाई।<br />
+
<br />
+
छायानट छवि-परदे में<br />
+
सम्मोहन वेणु बजाता<br />
+
सन्ध्या-कुहुकिनी-अंचल में<br />
+
कौतुक अपना कर जाता।<br />
+
<br />
+
मादकता से आये तुम<br />
+
संज्ञा से चले गये थे<br />
+
हम व्याकुल पड़े बिलखते<br />
+
थे, उतरे हुए नशे से।<br />
+
<br />
+
अम्बर असीम अन्तर में<br />
+
चंचल चपला से आकर<br />
+
अब इन्द्रधनुष-सी आभा<br />
+
तुम छोड़ गये हो जाकर।<br />
+
<br />
+
मकरन्द मेघ माला-सी<br />
+
वह स्मृति मदमाती आती<br />
+
इस हृदय विपिन की कलिका<br />
+
जिसके रस से मुसक्याती।<br />
+
<br />
+
हैं हृदय शिशिरकण पूरित<br />
+
मधु वर्षा से शशि! तेरी<br />
+
मन मन्दिर पर बरसाता<br />
+
कोई मुक्ता की ढेरी।<br />
+
<br />
+
शीतल समीर आता हैं<br />
+
कर पावन परस तुम्हारा<br />
+
मैं सिहर उठा करता हूँ<br />
+
बरसा कर आँसू धारा<br />
+
<br />
+
मधु मालतियाँ सोती हैं<br />
+
कोमल उपधान सहारे<br />
+
मैं व्यर्थ प्रतीक्षा लेकर<br />
+
गिनता अम्बर के तारे।<br />
+
<br />
+
निष्ठर! यह क्या छिप जाना?<br />
+
मेरा भी कोई होगा<br />
+
प्रत्याशा विरह-निशा की<br />
+
हम होगे औ' दुख होगा।<br />
+
<br />
+
जब शान्त मिलन सन्ध्या को<br />
+
हम हेम जाल पहनाते<br />
+
काली चादर के स्तर का<br />
+
खुलना न देखने पाते।<br />
+
<br />
+
अब छुटता नहीं छुड़ाये<br />
+
रँग गया हृदय हैं ऐसा<br />
+
आँसू से धुला निखरता<br />
+
यह रंग अनोखा कैसा!<br />
+
<br />
+
<br />
+
कामना कला की विकसी <br />
+
कमनीय मूर्ति बन तेरी<br />
+
खिंचती हैं हृदय पटल पर<br />
+
अभिलाषा बनकर मेरी।<br />
+
<br />
+
मणि दीप लिये निज कर में<br />
+
पथ दिखलाने को आये<br />
+
वह पावक पुंज हुआ आव<br />
+
किरनों की लट बिखराये।<br />
+
<br />
+
बढ गयी और भी ऊँठी<br />
+
रूठी करुणा की वीणा<br />
+
दीनता दर्प बन बैठी<br />
+
साहस से कहती पीड़ा।<br />
+
<br />
+
यह तीव्र हृदय की मदिरा<br />
+
जी भर कर-छक कर मेरी<br />
+
अब लाल आँख दिखलाकर<br />
+
मुझको ही तुमने फेरी।<br />
+
<br />
+
नाविक! इस सूने तट पर<br />
+
किन लहरों में खे लाया<br />
+
इस बीहड़ बेला मे क्या<br />
+
अब तक था कोई आया।<br />
+
<br />
+
उम पार कहाँ फिर आऊँ<br />
+
तम के मलीन अंचल में <br />
+
जीवन का लोभ नहीं, वह<br />
+
वेदना छद्ममय छल में।<br />
+
<br />
+
प्रत्यावर्तन के पथ में<br />
+
पद-चिह्न न शेष रहा हैं।<br />
+
डूबा हैं हृदय मरूस्थल<br />
+
आँसू नद उमड़ रहा हैं।<br />
+
<br />
+
अवकाश शून्य फैला है<br />
+
है शक्ति न और सहारा<br />
+
अपदार्थ तिरूँगा मैं क्या<br />
+
हो भी कुछ कूल  किनारा।<br />
+
<br />
+
तिरती थी तिमिर उदधि में<br />
+
नाविक! यह मेरी तरणी<br />
+
मुखचन्द्र किरण से खिंचकर<br />
+
आती समीप हो धरणी।<br />
+
<br />
+
सूखे सिकता सागर में<br />
+
यह नैया मेरे मन की<br />
+
आँसू का धार बहाकर<br />
+
खे चला प्रेम बेगुन की।<br />
+
<br />
+
यह पारावार तरल हो<br />
+
फेनिल हो गरल उगलता<br />
+
मथ जाला किस तृष्णा से<br />
+
तल में बड़वानल जलता।<br />
+
<br />
+
निश्वास मलय में मिलकर<br />
+
छाया पथ छू आयेगा<br />
+
अन्तिम किरणें बिखराकर<br />
+
हिमकर भी छिप जायेगा।<br />
+
<br />
+
चमकूँगा धूल कणों में<br />
+
सौरभ हो उड़ जाऊँगा<br />
+
पाऊँगा कहीं तुम्हें तो<br />
+
ग्रहपथ मे टकराऊँगा।<br />
+
<br />
+
इस यान्त्रिक जीवन में क्या<br />
+
ऐसी थी कोई क्षमता<br />
+
जगती थी ज्योति भरी-सी।<br />
+
तेरी सजीवता ममता।<br />
+
<br />
+
हैं चन्द्र हृदय में बैठा<br />
+
उस शीतल किरण सहारे<br />
+
सौन्दर्य सुधा बलिहारी<br />
+
चुगता चकोर अंगारे।<br />
+
<br />
+
बलने का सम्बल लेकर <br />
+
दीपक पतंग से मिलता<br />
+
जलने की दीन दशा में<br />
+
वह फूल सदृश हो खिलता!<br />
+
<br />
+
<br />
+
इस गगन यूथिका वन में<br />
+
तारे जूही से खिलते<br />
+
सित शतदल से शशि तुम क्यों<br />
+
उनमे जाकर हो मिलते?<br />
+
<br />
+
मत कहो कि यही सफलता<br />
+
कलियों के लघु जीवन की<br />
+
मकरंद भरी खिल जायें<br />
+
तोड़ी जाये बेमन की।<br />
+
<br />
+
यदि दो घड़ियों का जीवन<br />
+
कोमल वृन्तों में बीते<br />
+
कुछ हानि तुम्हारी हैं क्या<br />
+
चुपचाप चू पड़े जीते!<br />
+
<br />
+
सब समुन मनोरथ अंजलि<br />
+
बिखरा दी इन चरणों में<br />
+
कुचलो न कीट-सा, इनके<br />
+
कुछ हैं मकरन्द कणों में।<br />
+
<br />
+
निर्मोह काल के काले-<br />
+
पट पर कुछ अस्फुट रेखा<br />
+
सब लिखी पड़ी रह जाती <br />
+
सुख दुख मय जीवन रेखा।<br />
+
<br />
+
दुख सुख में उठता गिरता<br />
+
संसार तिरोहित होगा<br />
+
मुड़कर न कभी देखेगा<br />
+
किसका हित अनहित होगा।<br />
+
<br />
+
मानस जीवन वेदी पर<br />
+
परिणय हो विरह मिलन का <br />
+
दुख सुख दोनों नाचेंगे<br />
+
हैं खेल आँख का मन का।<br />
+
<br />
+
इतना सुख ले पल भर में<br />
+
जीवन के अन्तस्तल से<br />
+
तुम खिसक गये धीरे-से<br />
+
रोते अब प्राण विकल से।<br />
+
<br />
+
क्यों छलक रहा दुख मेरा<br />
+
ऊषा की मृदु पलकों में<br />
+
हाँ, उलझ रहा सुख मेरा<br />
+
सन्ध्या की घन अलकों में।<br />
+
<br />
+
लिपटे सोते थे मन में<br />
+
सुख दुख दोनों ही ऐसे<br />
+
चन्द्रिका अँधेरी मिलती<br />
+
मालती कुंज में जैसे।<br />
+
<br />
+
अवकाश असीम सुखों से<br />
+
आकाश तरंग बनाता<br />
+
हँसता-सा छायापथ में<br />
+
नक्षत्र समाज दिखाता।<br />
+
<br />
+
नीचे विपुला धरणी हैं<br />
+
दुख भार वहन-सी करती<br />
+
अपने खारे आँसे से<br />
+
करुणा सागर को भरती।<br />
+
<br />
+
धरणी दुख माँग रही हैं<br />
+
आकाश छीनता सुख को<br />
+
अपने को देकर उनको<br />
+
हूँ देख रहा उस मुख को।<br />
+
<br />
+
इतना सुख जो न समाता<br />
+
अन्तरिक्ष में, जल थल में<br />
+
उनकी मुट्ठी में बन्दी<br />
+
था आश्वासन के छल में।<br />
+
<br />
+
दुक क्या था उनको, मेरा<br />
+
जो सुख लेकर यों भागे<br />
+
सोते में चुम्बन लेकर<br />
+
जब रोम तनिक-सा जागे।<br />
+
<br />
+
सुख मान लिया करता था<br />
+
जिसका दुख था जीवन में<br />
+
जीवन में मृत्यु बसी हैं<br />
+
जैसे बिजली हो घन में।<br />
+
<br />
+
उनका सुख नाच उठा हैं<br />
+
यह दुख द्रुम दल हिलने से<br />
+
ऋंगार चमकता उनका<br />
+
मेरी करुणा मिलने से।<br />
+
<br />
+
हो उदासीन दोनों से <br />
+
दुख सुख से मेल कराये<br />
+
ममता की हानि उठाकर<br />
+
दो रुठे हुए मनाये।<br />
+
<br />
+
चढ़ जाय अनन्त गगन पर<br />
+
वेदना जलद की माला<br />
+
रवि तीव्र ताप न जलाये<br />
+
हिमकर को हो न उजाला।<br />
+
<br />
+
नचती है नियति नटी-सी<br />
+
कुन्दक-क्रीड़ा-सी करती<br />
+
इस व्यथित विश्व आँगन में<br />
+
अपना अतृप्त मन भरती।<br />
+
<br />
+
सन्ध्या की मिलन प्रतिक्षा <br />
+
कह चलती कुछ मनमानी<br />
+
ऊषा की रक्त निराशा<br />
+
कर देती अन्त कहानी।<br />
+
<br />
+
"विभ्रम मदिरा से उठकर<br />
+
आओ तम मय अन्तर में<br />
+
पाओगे कुछ न,टटोलो<br />
+
अपने बिन सूने घर में।<br />
+
<br />
+
इस शिथिल आह से खिंचकर<br />
+
तुम आओगे-आओगे<br />
+
इस बढ़ी व्यथा को मेरी<br />
+
रोओगे अपनाओगे।"<br />
+
<br />
+
वेदना विकल फिर आई<br />
+
मेरी चौदहो भुवन में<br />
+
सुख कहीं न दिया दिखाई<br />
+
विश्राम कहाँ जीवन में!<br />
+
<br />
+
उच्छ्वास और आँसू में<br />
+
विश्राम थका सोता हैं<br />
+
रोई आँखों में निद्रा<br />
+
बनकर सपना होता हैं।<br />
+
<br />
+
निशि, सो जावें जब उर में<br />
+
ये हृदय व्यथा आभारी<br />
+
उनका उन्माद सुनहला<br />
+
सहला देना सुखकारी।<br />
+
<br />
+
तुम स्पर्श हीन अनुभव-सी<br />
+
नन्दन तमाल के तल से<br />
+
जग छा दो श्याम-लता-सी<br />
+
तन्द्रा पल्लव विह्वल से।<br />
+
<br />
+
सपनों की सोनजुही सब<br />
+
बिखरें, ये बनकर तारा<br />
+
सित सरसित से भर जावे<br />
+
वह स्वर्गंगा की धारा<br />
+
<br />
+
नीलिमा शयन पर बैठी<br />
+
अपने नभ के आँगन में<br />
+
विस्मृति की नील नलिन रस<br />
+
बरसो अपांग के घन से।<br />
+
<br />
+
चिर दग्ध दुखी यह वसुधा<br />
+
आलोक माँगती तब भी<br />
+
तम तुहिन बरस दो कन-कन<br />
+
यह पगली सोये अब भी।<br />
+
<br />
+
विस्मृति समाधि पर होगी<br />
+
वर्षा कल्याण जलद की<br />
+
सुख सोये थका हुआ-सा<br />
+
चिन्ता छुट जाय विपद की।<br />
+
<br />
+
चेतना लहर न उठेगी<br />
+
जीवन समुद्र थिर होगा<br />
+
सन्ध्या हो सर्ग प्रलय की<br />
+
विच्छेद मिलन फिर होगा।<br />
+
<br />
+
रजनी की रोई आँखें<br />
+
आलोक बिन्दु टपकातीं<br />
+
तम की काली छलनाएँ<br />
+
उनको चुप-चुप पी जाती।<br />
+
<br />
+
सुख अपमानित करता-सा<br />
+
जब व्यंग हँसी हँसता हैं<br />
+
चुपके से तब मत रो तू<br />
+
यब कैसी परवशता हैं।<br />
+
<br />
+
अपने आँसू की अंजलि<br />
+
आँखो से भर क्यों पीता<br />
+
नक्षत्र पतन के क्षण में <br />
+
उज्जवल होकर है जीता।<br />
+
<br />
+
वह हँसी और यह आँसू<br />
+
घुलने दे-मिल जाने दे<br />
+
बरसात नई होने दे<br />
+
कलियों को खिल जाने दे।<br />
+
<br />
+
चुन-चुन ले रे कन-कन से<br />
+
जगती की सजग व्यथाएँ<br />
+
रह जायेंगी कहने को<br />
+
जन-रंजन-करी कथाएँ।<br />
+
<br />
+
जब नील दिशा अंचल में<br />
+
हिमकर थक सो जाते हैं<br />
+
अस्ताचल की घाटी में<br />
+
दिनकर भी खो जाते हैं।<br />
+
<br />
+
नक्षत्र डूब जाते हैं<br />
+
स्वर्गंगा की धारा में<br />
+
बिजली बन्दी होती जब<br />
+
कादम्बिनी की कारा में।<br />
+
<br />
+
मणिदीप विश्व-मन्दिर की<br />
+
पहने किरणों को माला<br />
+
तुम अकेली तब भी<br />
+
जलती हो मेरी ज्वाला।<br />
+
<br />
+
उत्ताल जलधि वेला में<br />
+
अपने सिर शैल उठाये<br />
+
निस्तब्ध गगन के नीचे<br />
+
छाती में जलन छिपाये<br />
+
<br />
+
संकेत नियति का पाकर<br />
+
तम से जीवन उलझाये<br />
+
जब सोती गहन गुफा में <br />
+
चंचल लट को छिटकाये।<br />
+
<br />
+
वह ज्वालामुखी जगत की<br />
+
वह विश्व वेदना बाला<br />
+
तब भी तुम सतत अकेली <br />
+
जलती हो मेरी ज्वाला!<br />
+
<br />
+
इस व्यथित विश्व पतझड़ की<br />
+
तुम जलती हो मृदु होली<br />
+
हे अरुणे! सदा सुहानिगि<br />
+
मानवता सिर की रोली।<br />
+
<br />
+
जीवन सागर में पावन<br />
+
बडवानल की ज्वाला-सी<br />
+
यह सारा कलुष जलाकर<br />
+
तुम जलो अनल बाला-सी।<br />
+
<br />
+
जगद्वन्द्वों के परिणय की<br />
+
हे सुरभिमयी जयमाला<br />
+
किरणों के केसर रज से<br />
+
भव भर दो मेरी ज्वाला।<br />
+
<br />
+
तेरे प्रकाश में चेतन-<br />
+
संसार वेदना वाला,<br />
+
मेरे समीप होता है<br />
+
पाकर कुछ करुण उजाला।<br />
+
<br />
+
उसमें धुँधली छायाएँ<br />
+
परिचय अपना देती हैं<br />
+
रोदन का मूल्य चुकाकर<br />
+
सब कुछ अपना लेती हैं।<br />
+
<br />
+
निर्मम जगती को तेरा<br />
+
मंगलमय मिले उजाला<br />
+
इस जलते हुए हृदय को<br />
+
कल्याणी शीतल ज्वाला।<br />
+
<br />
+
जिसके आगे पुलकित हो<br />
+
जीवन हैं सिसकी भरता<br />
+
हाँ मृत्यु नृत्य करती हैं<br />
+
मुस्क्याती खड़ी अमरता ।<br />
+
<br />
+
वह मेरे प्रेम विहँसते<br />
+
जागो मेरे मधुवन में <br />
+
फिर मधुर भावनाओं का <br />
+
कवरव हो इस जीवन में।<br />
+
<br />
+
मेरी आहों में जागो<br />
+
सुस्मित में सोनेवाले<br />
+
अधरों से हँसते-हँसते<br />
+
आँखों से रोनेवाले।<br />
+
<br />
+
इस स्वप्नमयी संसृत्ति के<br />
+
सच्चे जीवन तुम जागो<br />
+
मंगल किरणों से रंजित<br />
+
मेरे सुन्दरतम जागो।<br />
+
<br />
+
अभिलाषा के मानस में<br />
+
सरसिज-सी आँखे खोलो<br />
+
मधुपों से मधु गुंजारो<br />
+
कलरव से फिर कुछ बोलो।<br />
+
<br />
+
आशा का फैल रहा हैं<br />
+
यह सूना नीला अंचल<br />
+
फिर स्वर्ण-सृष्टि-सी नाचे<br />
+
उसमें करुणा हो चंचल<br />
+
<br />
+
मधु संसृत्ति की पुलकावलि<br />
+
जागो, अपने यौवन में<br />
+
फिर से मरन्द हो<br />
+
कोमल कुसुमों के वन में।<br />
+
<br />
+
फिर विश्व माँगता होवे<br />
+
ले नभ की खाली प्याली<br />
+
तुमसे कुछ मधु की बूँदे<br />
+
लौटा लेने को लाली।<br />
+
<br />
+
फिर तम प्रकाश झगड़े में<br />
+
नवज्योति विजयिनि होती<br />
+
हँसता यह विश्व हमारा<br />
+
बरसाता मंजुल मोती।<br />
+
<br />
+
प्राची के अरुण मुकुर में<br />
+
सुन्दर प्रतिबिम्ब तुम्हारा<br />
+
उस अलस उषा में देखूँ<br />
+
अपनी आँखों का तारा।<br />
+
<br />
+
कुछ रेखाएँ हो ऐसी<br />
+
जिनमें आकृति हो उलझी<br />
+
तब एक झलक! वह कितनी<br />
+
मधुमय रचना हो सुलझी।<br />
+
<br />
+
जिसमें इतराई फिरती<br />
+
नारी निसर्ग सुन्दरता<br />
+
छलकी पड़ती हो जिसमें<br />
+
शिशु की उर्मिल निर्मलता<br />
+
<br />
+
आँखों का निधि वह मुख हो<br />
+
अवगुंठन नील गगन-सा<br />
+
यह शिथिल हृदय ही मेरा<br />
+
खुल जावे स्वयं मगन-सा।<br />
+
<br />
+
मेरी मानसपूजा का<br />
+
पावन प्रतीक अविचल हो<br />
+
झरता अनन्त यौवन मधु<br />
+
अम्लान स्वर्ण शतदल हो।<br />
+
<br />
+
कल्पना अखिल जीवन की<br />
+
किरनों से दृग तारा की<br />
+
अभिषेक करे प्रतिनिधि बन<br />
+
आलोकमयी धारा की।<br />
+
<br />
+
वेदना मधुर हो जावे<br />
+
मेरी निर्दय तन्मयता <br />
+
मिल जाये आज हृदय को<br />
+
पाऊँ मैं भी सहृदयता।<br />
+
<br />
+
मेरी अनामिका संगिनि!<br />
+
सुन्दर कठोर कोमलते!<br />
+
हम दोनों रहें सखा ही<br />
+
जीवन-पथ चलते-चलते।<br />
+
<br />
+
ताराओ की वे रातें<br />
+
कितने दिन-कितनी घड़ियाँ<br />
+
विस्मृति में बीत गई वे<br />
+
निर्मोह काल की कड़ियाँ<br />
+
<br />
+
उद्वेलित तरल तरंगें<br />
+
मन की न लौट जावेंगी<br />
+
हाँ, उस अनन्त कोने को<br />
+
वे सच नहला आवेंगी।<br />
+
<br />
+
जल भर लाते हैं जिसको<br />
+
छूकर नयनों के कोने<br />
+
उस शीतलता के प्यासे<br />
+
दीनता दया के दोने।<br />
+
<br />
+
फेनिल उच्छ्वास हृदय के<br />
+
उठते फिर मधुमाया में<br />
+
सोते सुकुमार सदा जो<br />
+
पलकों की सुख छाया में।<br />
+
<br />
+
आँसू वर्षा से सिंचकर<br />
+
दोनों ही कूल हरा हो<br />
+
उस शरद प्रसन्न नदी में<br />
+
जीवन द्रव अमल भरा हो।<br />
+
<br />
+
जैसे जीवन का जलनिधि<br />
+
बन अंधकार उर्मिल हो<br />
+
आकाशदीप-सा तब वह<br />
+
तेरा प्रकाश झिलमिल हो।<br />
+
<br />
+
हैं पड़ी हुई मुँह ढककर<br />
+
मन की जितनी पीड़ाएँ<br />
+
वे हँसने लगें सुमन-सी<br />
+
करती कोमल क्रीड़ाएँ।<br />
+
<br />
+
तेरा आलिंगन कोमल<br />
+
मृदु अमरबेलि-सा फैले<br />
+
धमनी के इस बन्धन में<br />
+
जीवन ही हो न अकेले।<br />
+
<br />
+
हे जन्म जन्म के जीवन<br />
+
साथी संसृति के दुख में<br />
+
पावन प्रभात हो जावे<br />
+
जागो आलस के सुख में ।<br />
+
<br />
+
जगती का कलुष अपावन<br />
+
तेरी विदग्धता पावे<br />
+
फिर निखर उठे निर्मलता<br />
+
यह पाप पुण्य हो जावे।<br />
+
<br />
+
सपनों की सुख छाया में<br />
+
जब तन्द्रालस संसृति है<br />
+
तुम कौन सजग हो आई<br />
+
मेरे मन में विस्मृति है!<br />
+
<br />
+
तुम! अरे, वही हाँ तुम हो<br />
+
मेरी चिर जीवनसंगिनि<br />
+
दुख वाले दग्ध हृदय की<br />
+
वेदने! अश्रुमयि रंगिनि!<br />
+
<br />
+
जब तुम्हें भूल जाता हूँ<br />
+
कुड्मल किसलय के छल में<br />
+
तब कूक हूक-सू बन तुम<br />
+
आ जाती रंगस्थल में।<br />
+
<br />
+
बतला दो अरे न हिचको<br />
+
क्या देखा शून्य गगन में<br />
+
कितना पथ हो चल आई<br />
+
रजनी के मृदु निर्जन में!<br />
+
<br />
+
सुख तृप्त हृदय कोने को<br />
+
ढँकती तमश्यामल छाया<br />
+
मधु स्वप्निल ताराओं की<br />
+
जब चलती अभिनय माया।<br />
+
<br />
+
देखा तुमने तब रुककर<br />
+
मानस  कुमुदो का रोना<br />
+
शशि किरणों का हँस-हँसकर<br />
+
मोती मकरन्द पिरोना।<br />
+
<br />
+
देखा बौने जलनिधि का<br />
+
शशि छूने की ललचाना<br />
+
वह हाहाकार मचाना<br />
+
फिर उठ-उठकर गिर जाना।<br />
+
<br />
+
मुँह सिये, झेलती अपनी<br />
+
अभिशाप ताप ज्वालाएँ<br />
+
देखी अतीत के युग की<br />
+
चिर मौन शैल मालाएँ।<br />
+
<br />
+
जिनपर न वनस्पति कोई<br />
+
श्यामल उगने पाती है<br />
+
जो जनपद परस तिरस्कृत<br />
+
अभिशप्त कही जाती हैं।<br />
+
<br />
+
कलियों को उन्मुख देखा<br />
+
सुनते वह कपट कहानी<br />
+
फिर देखा उड़ जाते भी<br />
+
मधुकर को कर मनमानी।<br />
+
<br />
+
फिर उन निराश नयनों की<br />
+
जिनके आँसू सूखे हैं<br />
+
उस प्रलय दशा को देखा <br />
+
जो चिर वंचित भूखे हैं।<br />
+
<br />
+
सूखी सरिता की शय्या<br />
+
वसुधा की करुण कहानी<br />
+
कूलों में लीन न देखी<br />
+
क्या तुमने मेरी रानी?<br />
+
<br />
+
सूनी कुटिया कोने में<br />
+
रजनी भर जलते जाना<br />
+
लघु स्नेह भरे दीपक का<br />
+
देखा है फिर बुझ जाना।<br />
+
<br />
+
सबका निचोड़ लेकर तुम<br />
+
सुख से सूखे जीवन में<br />
+
बरसों प्रभात हिमकन-सा<br />
+
आँसू इस विश्व-सदन में ।<br />
+
<br />
+
<br />
+
<br />
+
<br />
+
***
+

15:54, 24 जनवरी 2021 के समय का अवतरण

आँसू
Aansoo-kavitakosh.jpeg
रचनाकार जयशंकर प्रसाद
प्रकाशक
वर्ष
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विषय
विधा
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ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।

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