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आँखें भरी-भरी / राजकिशोर सिंह

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रहती हैं निगाहें गड़ी-गड़ी
बिऽरी जुल्पफों पर ऽड़ी-ऽड़ी
हुई क्षण भर दूर नजर तो
आँऽें रहती हैं भरी-भरी

लेता हूँ देऽ जी भर उन्हें
हो जातीं मूछें कड़ी-कड़ी
मुऽड़े का है अजीब कमाल
होठ लाल आँऽें बड़ी-बड़ी

मन का हाल न पूछो यारो
सूऽी घास लगती हरी-हरी
मिलन की आस में रहती वो
मिलती मुझसे मगर डरी-डरी।