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आंख में भी पाणी हो / राजेश कुमार व्यास

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दादी कनै
एक कठोती ही
उण रै मांय पाणी लेय‘र
बा
न्हावती
न्हाण रै बाद
बच्यौड़े पाणी सूं कपड़ा धोवती।
पाणी
फेरूं भी
बच जावतौ
दादी
घर आळा ने
सूंप देवती बो पाणी
ओ कैवते-
‘मसोता कर लो
ई पाणी सूं...’
दादी रो पाणी
कदै नीं खूटतो
तद
आंख में भी पाणी हो
सब दादी रो कैवणों मानता।