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'''आइए, कुछ नया करें '''
 
 
कनाट प्लेस की
अति जनसंकुल जगह पर
ब्याह की चिर-आस में
गदराई, फुलझडियाईफुलझड़ियाई
और हौले-हौले पछताकर
कुम्हलाई, मुरझाई, पथराई
अनब्याही अधेड़ लड़कियों को तज
आप मोहल्ले की कुतियों से
ब्याह रचाएं रचाएँ हनीमून मनाने स्विटजरलैंड जाएंजाएँ,
आप बेशक! लोगों के लिए फैन होंगे
मीडियाजनों और खबरनवीसों ख़बरनवीसों से घिरे होंगे
'सर' और महाशय होंगे
परिजनों की शादी और
शिशु के जन्म पर
काले पोशाक काली पोशाकेम पहन मातम मनाएँ,
फसल सूख जाए तो
खाली खलिहानों में पिकनिक मनाएँ
और अगर फसल लहलहाएं फसलें लहलहाएँ तो
उनकी होली जलाएँ
उसके 'शहीद' होने पर
उसे देशव्यापी भावभीनी श्रद्धांजलि दें,
उसकी माल्यार्पित फोटो फ़ोटो
संसद के केन्द्रीय कक्ष में लगाएँ,
उसकी स्मृति में
यानी, खूँखार आतंकवादियों का
जघन्य देशद्रोहियों का
राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाएंबुलाएँ,
उनकी मौज़ूदगी में
क़ुरान और गीता जलाएँ,
बुद्ध, अशोक, अकबर, गाँधी के पुतलों पर
जूतों की मालाएं चढ़ाएंमालाएँ चढ़ाएँ,
साखियों, सरमनों
ऋचाओं और धम्मों के रिकार्ड बजा
उन पर ठठा-ठठा
गलाफोड़ हंसी हँसी हँसें
ताने और फब्तियाँ कसें
आइए, कर्मवादी बनेँ
अपसंस्कृति की आँधी बनेँ
अर्थात टी.वी. टी०वी० और इन्टरनेट परआदमगोश्त के कबाब की विधियाँ सिखाएंसिखाएँ,
सेंधमारी, हत्या, डकैती के गुर बताएँ
बलात्कार का सीधा प्रसारण करें,
आइए, दूरदर्शन के उदारीकरण के दौर में
जनानेंद्रियों के आदिम कार्य दर्शाएंदर्शाए~म,
साँड़ों को कमसिन लौंडियों पर,
कामांध मर्दों को
और क्षितिज के पार
इस पल्लवित संस्कृति को
बुलंद करें.! ('''रचनाकाल''' : ०७-०९-१९९९)
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