भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आइने में जब उसने अपना चाँद-सा मुखड़ा देखा होगा / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडे…)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
  
 
हम कब तक यों दूर रहेंगे, आपने कुछ तो सोचा होगा!  
 
हम कब तक यों दूर रहेंगे, आपने कुछ तो सोचा होगा!  
प्यार का क्या मतलब निकलेगा! आखिर इस दिल का क्या होगा!
+
प्यार का क्या मतलब निकलेगा! आख़िर इस दिल का क्या होगा!
  
 
हमसे शिकायत है कि कभी हम अपनी बात नहीं कहते हैं
 
हमसे शिकायत है कि कभी हम अपनी बात नहीं कहते हैं
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
शायद, उसने हर पत्थर में आपका चेहरा देखा होगा  
 
शायद, उसने हर पत्थर में आपका चेहरा देखा होगा  
  
माना, एक गुलाब यहाँ पर अपनी खुशबू छोड़ गया है
+
माना, एक गुलाब यहाँ पर अपनी ख़ुशबू छोड़ गया है
 
वह लेकिन सपना था, उसको भूल ही जाना अच्छा होगा
 
वह लेकिन सपना था, उसको भूल ही जाना अच्छा होगा
  

01:18, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


आईने में जब उसने अपना चाँद-सा मुखड़ा देखा होगा
बाग़ में कोयल कूकी होगी, गुंचा-गुंचा फूटा होगा

हम कब तक यों दूर रहेंगे, आपने कुछ तो सोचा होगा!
प्यार का क्या मतलब निकलेगा! आख़िर इस दिल का क्या होगा!

हमसे शिकायत है कि कभी हम अपनी बात नहीं कहते हैं
उससे भी पूछो, रंगमहल में वह अपने , क्या करता होगा

यों ही नहीं अपना सर कोई हर पत्थर से टकराता है
शायद, उसने हर पत्थर में आपका चेहरा देखा होगा

माना, एक गुलाब यहाँ पर अपनी ख़ुशबू छोड़ गया है
वह लेकिन सपना था, उसको भूल ही जाना अच्छा होगा