भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आइने में जब उसने अपना चाँद-सा मुखड़ा देखा होगा / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:18, 2 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आईने में जब उसने अपना चाँद-सा मुखड़ा देखा होगा
बाग़ में कोयल कूकी होगी, गुंचा-गुंचा फूटा होगा

हम कब तक यों दूर रहेंगे, आपने कुछ तो सोचा होगा!
प्यार का क्या मतलब निकलेगा! आख़िर इस दिल का क्या होगा!

हमसे शिकायत है कि कभी हम अपनी बात नहीं कहते हैं
उससे भी पूछो, रंगमहल में वह अपने , क्या करता होगा

यों ही नहीं अपना सर कोई हर पत्थर से टकराता है
शायद, उसने हर पत्थर में आपका चेहरा देखा होगा

माना, एक गुलाब यहाँ पर अपनी ख़ुशबू छोड़ गया है
वह लेकिन सपना था, उसको भूल ही जाना अच्छा होगा