भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आओ, चलो तो जरा / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= भावना कुँअर }} Category:चोका <poem> </poem>' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {KKGlobal}} | + | {{KKGlobal}} |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= भावना कुँअर | |रचनाकार= भावना कुँअर | ||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | पकड़ो हाथ | |
− | + | चलो तो मेरे साथ | |
+ | तुम्हें ले चलूँ | ||
+ | बचपन के पास। | ||
+ | खूब बरसा | ||
+ | कल रात जो पानी | ||
+ | उसमें चलो | ||
+ | कागज की नाव से | ||
+ | कर आते हैं | ||
+ | एक बार फिर से | ||
+ | बेख़ौफ होके | ||
+ | वो बचपन वाली | ||
+ | लम्बी- सी सैर। | ||
+ | त्रस्त हो चला अब | ||
+ | रोज- रोज ही | ||
+ | कड़वे वचनों को | ||
+ | पीकर मन। | ||
+ | आओ, चलो तो जरा | ||
+ | रंगबिरंगा | ||
+ | शरबत सा मीठा | ||
+ | चुस्की का गोला | ||
+ | फिर से बनवा लें। | ||
+ | कूदे जीभर | ||
+ | बरसात के संग | ||
+ | भूल के रिश्ते | ||
+ | और सारे बंधन | ||
+ | टूटे झुलसे | ||
+ | मन की तपस को | ||
+ | आज मिटा लें | ||
+ | जीभर चलो जरा | ||
+ | यूँ शीतलता पा लें। | ||
</poem> | </poem> |
04:00, 11 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
पकड़ो हाथ
चलो तो मेरे साथ
तुम्हें ले चलूँ
बचपन के पास।
खूब बरसा
कल रात जो पानी
उसमें चलो
कागज की नाव से
कर आते हैं
एक बार फिर से
बेख़ौफ होके
वो बचपन वाली
लम्बी- सी सैर।
त्रस्त हो चला अब
रोज- रोज ही
कड़वे वचनों को
पीकर मन।
आओ, चलो तो जरा
रंगबिरंगा
शरबत सा मीठा
चुस्की का गोला
फिर से बनवा लें।
कूदे जीभर
बरसात के संग
भूल के रिश्ते
और सारे बंधन
टूटे झुलसे
मन की तपस को
आज मिटा लें
जीभर चलो जरा
यूँ शीतलता पा लें।