भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आओ करें आनन्द केलि / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आओ करें आनन्द-केलि
मेरे जीवन की सहेली

विकल-विहग तेरे उरोज
कम्पित-आकुल दोनों सरोज
हहराता चेतन - सागर
तॄष्णा में डूबा है स्वर
व्यग्र-विह्वल चंचल-चेहरा
दॄग छाया मादक घेरा
व्याकुल अधर तपता शरीर
प्रणय पागल मन है अधीर

लगे मुझे तू अलबेली
मेरे जीवन की सहेली

मंद- मॄदु उल्लास तेरा
लालसी परिहास मेरा
गरल अनल रक्तिम कपोल
राग मर्दन रति हिल्लोल
सातवें सोपान पर हम
काम के उत्तान पर हम
झर झराझर झरा पंचम
तॄष्णा -तॄप्ति का संगम

थी अनोखी अनुराग खेलि
मेरे जीवन की सहेली

2002 में रचित