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आओ कुछ देर गले लग लें ठहर के / गुलाब खंडेलवाल

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आओ कुछ देर गले लग लें ठहर के
होते यहीं से अलग रास्ते सफ़र के

दर्द दिल का तो नहीं बाँट सका कोई
आये जो दोस्त, गए आहें भर-भर के

हमको तूफ़ान के थपेड़ों का डर क्या!
नाव यह रही है सदा बीच में भँवर के

दिल से क्यों उनका ख़याल मिट न पाता
खेल प्यार के वे अगर खेल थे नज़र के!

यह भी, गुलाब! खिलने में कोई खिलना
मिल न पायीं थीं निगाहें भी अभी, सरके!