भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आओ पेड़ लगाएं / नागेश पांडेय 'संजय'

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:52, 22 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नागेश पांडेय 'संजय' |संग्रह= अपलम च...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारे जग के शुभचिन्तक,
ये पेड़ बहुत उपकारी।
सदा-सदा से वसुधा इनकी
ऋणी और आभारी।
परहित जीने-मरने का
आदर्श हमें सिखलाएँ।

फल देते, ईंधन देते हैं,
देते औषधि न्यारी।
छाया देते, औ‘ देते हैं
सरस हवा सुखकारी।
आक्सीजन का मधुर खजाना
भर-भर हमें लुटाएँ।

गरमी, वर्षा, शीत कड़ी
ये अविकल सहते जाते,
लू, आँधी, तूफान भयंकर
देख नहीं घबड़ाते।
सहनशीलता, साहस की
ये पूज्यनीय प्रतिमाएँ।

पेड़ प्रकृति का गहना हैं,
ये हैं श्रृंगार धरा का।
इन्हें काट, क्यूँ डाल रहे
अपने ही घर में डाका।
गलत राह को अभी त्याग कर
सही राह पर आएँ।