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"आके क़ासिद ने कहा जो, वही अक्सर निकला / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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नामाबर समझे थे हम, वह तो पयम्बर निकला॥
 
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बाएगुरबत कि हुइ जिसके लिए खाना-खराब।
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बाएगु़रबत कि हुई जिसके लिए खाना-खराब।
 
सुनके आवाज़ भी घर से न वह बाहर निकला॥
 
सुनके आवाज़ भी घर से न वह बाहर निकला॥
  
 
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16:03, 12 सितम्बर 2009 का अवतरण


आके क़ासिद ने कहा जो, वही अकसर निकला।
नामाबर समझे थे हम, वह तो पयम्बर निकला॥

बाएगु़रबत कि हुई जिसके लिए खाना-खराब।
सुनके आवाज़ भी घर से न वह बाहर निकला॥