भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आगमन वसन्त का / येव्गेनी येव्तुशेंको" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको |संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
{{KKAnooditRachna
+
{{KKRachna
 
|रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको
 
|रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको
 
|संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको
 
|संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको
 
}}
 
}}
 
[[Category:रूसी भाषा]]
 
[[Category:रूसी भाषा]]
 +
<Poem>
  
 
धूप खिली थी
 
धूप खिली थी
 
 
और रिमझिम वर्षा
 
और रिमझिम वर्षा
 
 
छत पर ढोलक-सी बज रही थी लगातार
 
छत पर ढोलक-सी बज रही थी लगातार
 
 
सूर्य ने फैला रखी थीं बाहें अपनी
 
सूर्य ने फैला रखी थीं बाहें अपनी
 
 
वह जीवन को आलिंगन में भर
 
वह जीवन को आलिंगन में भर
 
 
कर रहा था प्यार
 
कर रहा था प्यार
 
  
 
नव-अरुण की
 
नव-अरुण की
 
 
ऊष्मा से
 
ऊष्मा से
 
 
हिम सब पिघल गया था
 
हिम सब पिघल गया था
 
 
जमा हुआ  
 
जमा हुआ  
 
 
जीवन सारा तब
 
जीवन सारा तब
 
 
जल में बदल गया था
 
जल में बदल गया था
  
 
वसन्त कहार बन
 
वसन्त कहार बन
 
 
बहंगी लेकर
 
बहंगी लेकर
 
 
हिलता-डुलता आया ऎसे
 
हिलता-डुलता आया ऎसे
 
 
दो बाल्टियों में
 
दो बाल्टियों में
 
 
भर लाया हो
 
भर लाया हो
 
 
दो कम्पित सूरज जैसे
 
दो कम्पित सूरज जैसे
 +
</poem>

01:36, 17 फ़रवरी 2009 का अवतरण


धूप खिली थी
और रिमझिम वर्षा
छत पर ढोलक-सी बज रही थी लगातार
सूर्य ने फैला रखी थीं बाहें अपनी
वह जीवन को आलिंगन में भर
कर रहा था प्यार

नव-अरुण की
ऊष्मा से
हिम सब पिघल गया था
जमा हुआ
जीवन सारा तब
जल में बदल गया था

वसन्त कहार बन
बहंगी लेकर
हिलता-डुलता आया ऎसे
दो बाल्टियों में
भर लाया हो
दो कम्पित सूरज जैसे