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"आजादी की भोर है / सुरंगमा यादव" के अवतरणों में अंतर

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आजादी की भोर है, मन में भर उल्लास।
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घुट- घुट जीना छोड़ दे, खुल कर ले अब साँस।।
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पाना है मुश्किल बड़ा,खोना है आसान।
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जो खोया सो भूल जा,अब पाने की ठान।।
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नारी कोमल फूल-सी,पग- पग बिखरे शूल।             
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अंगारों पर चल रही, सब पीड़ाएँ भूल।।
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फिर न दुःशासन कर सके,सीमाओं को पार।
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स्वयं रोकना है तुम्हें,जग के सभी प्रहार।।
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पग- पग बैठे दैत्य हैं, घात लगाये क्रूर।
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गति अवरोधक हैं बहुत, जाना तुमको दूर।।
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नारी आगे बढ़ रही, बड़ी खुशी की बात।
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उदित हुआ सूरज नया, बीत गयी है रात।।
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कितने झंझा झेलती, निखर उठी हर बार।
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दुख सहती चुपचाप है, खुशियाँ देता वार।।
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कहते नारी नरक है, खुद डूबे आकंठ।
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स्वांग रचाये घूमते, माला डाले कंठ।
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नारी को अबला कहा,मन कर दिया मलीन।
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अपनी सत्ता के लिए,रचें प्रपंच नवीन।।
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बिटिया रानी बन पली, फिर पहुँची ससुराल।
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रानी, बांदी बन गई, जीना हुआ मुहाल।
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बलि दहेज पर चढ़ गयी,मिली न सुख की छाँव।
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जीवन स्वाहा तब हुआ, भारी थे  जब पाँव। ।
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करुण कथा संघर्ष की, नारी जीवन गीत।
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सीता हो या राधिका, रहीं निभाती प्रीत।।
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नारी को लज्जित करें, समझें खुद को शूर।
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खुद अपने पुरुषत्व को, करें कलंकित क्रूर।।
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जिनकी बोली सुन समझ, सीखे तूने बोल।
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आज उन्हीं की बात का, रहा नहीं क्यों मोल।।
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परदेसी पंछी सुनो, जब आना इस बार।
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उनको लाना संग में,भूले जो घर द्वार।।
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पढ़े- लिखे शहरी बने, भूल गये पहचान।
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ऐसे आते गाँव में, जैसे हों अनजान।।
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रोती है इंसानियत, हँसते दानव  दैत्य।
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मानव करने लग गया, सारे खोटे कृत्य।।
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पाषाणों के शहर में, प्रतिमाओं का साथ।
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खोज रहे संवेदना, खंजर लेकर हाथ।।
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जाने क्यों मन हो गया,मेराआज उदास।
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व्यर्थ वाद की हर जगह, बहती आज बतास।।
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स्वांग रचाये  फिर रहे, बनते भारी संत।
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आप बड़ाई खुद करें, ऐसे हैं गुणवंत।।
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बनी बनायी लीक पर, चलना है आसान।
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नयी लीक रखना यहाँ,कठिन भगीरथ जान।।
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अमराई की छाँव में, छनकर आती धूप।
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कोयल कानों में कहे, मीठे बोल अनूप।।
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सावन भादों बन गये, मेरे व्याकुल नैन।
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मन  पापी प्यासा फिरे,तुम बिन है बेचैन।।
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शासक शासन मौन हैं, खूब बढ़े अपराध।
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अंधा बहरा युग हुआ, मनुज रहे एकाध।।
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चलो नया संकल्प लें, आया नूतन साल।
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नये विकल्प तलाश लें,मन के छोड़ मलाल।
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नारी अबला है नहीं, ज्ञान-बुद्धि की खान।
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रत्न बने तुलसी यहाँ, पा रत्ना से ज्ञान।।
  
  
 
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10:09, 23 जनवरी 2024 का अवतरण


51
 आजादी की भोर है, मन में भर उल्लास।
घुट- घुट जीना छोड़ दे, खुल कर ले अब साँस।।
52
पाना है मुश्किल बड़ा,खोना है आसान।
जो खोया सो भूल जा,अब पाने की ठान।।
53
 नारी कोमल फूल-सी,पग- पग बिखरे शूल।
 अंगारों पर चल रही, सब पीड़ाएँ भूल।।
54
फिर न दुःशासन कर सके,सीमाओं को पार।
स्वयं रोकना है तुम्हें,जग के सभी प्रहार।।
55
पग- पग बैठे दैत्य हैं, घात लगाये क्रूर।
गति अवरोधक हैं बहुत, जाना तुमको दूर।।
56
 नारी आगे बढ़ रही, बड़ी खुशी की बात।
उदित हुआ सूरज नया, बीत गयी है रात।।
57
 कितने झंझा झेलती, निखर उठी हर बार।
दुख सहती चुपचाप है, खुशियाँ देता वार।।
58
कहते नारी नरक है, खुद डूबे आकंठ।
स्वांग रचाये घूमते, माला डाले कंठ।
59
 नारी को अबला कहा,मन कर दिया मलीन।
अपनी सत्ता के लिए,रचें प्रपंच नवीन।।
60
 बिटिया रानी बन पली, फिर पहुँची ससुराल।
रानी, बांदी बन गई, जीना हुआ मुहाल।
61
 बलि दहेज पर चढ़ गयी,मिली न सुख की छाँव।
जीवन स्वाहा तब हुआ, भारी थे जब पाँव। ।
62
 करुण कथा संघर्ष की, नारी जीवन गीत।
सीता हो या राधिका, रहीं निभाती प्रीत।।
63
नारी को लज्जित करें, समझें खुद को शूर।
खुद अपने पुरुषत्व को, करें कलंकित क्रूर।।
64
 जिनकी बोली सुन समझ, सीखे तूने बोल।
आज उन्हीं की बात का, रहा नहीं क्यों मोल।।
65
परदेसी पंछी सुनो, जब आना इस बार।
उनको लाना संग में,भूले जो घर द्वार।।
66
 पढ़े- लिखे शहरी बने, भूल गये पहचान।
ऐसे आते गाँव में, जैसे हों अनजान।।
67
 रोती है इंसानियत, हँसते दानव दैत्य।
मानव करने लग गया, सारे खोटे कृत्य।।
68
 पाषाणों के शहर में, प्रतिमाओं का साथ।
खोज रहे संवेदना, खंजर लेकर हाथ।।
69
जाने क्यों मन हो गया,मेराआज उदास।
व्यर्थ वाद की हर जगह, बहती आज बतास।।
70
स्वांग रचाये फिर रहे, बनते भारी संत।
आप बड़ाई खुद करें, ऐसे हैं गुणवंत।।
71
बनी बनायी लीक पर, चलना है आसान।
नयी लीक रखना यहाँ,कठिन भगीरथ जान।।
72
अमराई की छाँव में, छनकर आती धूप।
कोयल कानों में कहे, मीठे बोल अनूप।।
73
सावन भादों बन गये, मेरे व्याकुल नैन।
मन पापी प्यासा फिरे,तुम बिन है बेचैन।।
74
शासक शासन मौन हैं, खूब बढ़े अपराध।
अंधा बहरा युग हुआ, मनुज रहे एकाध।।
75
चलो नया संकल्प लें, आया नूतन साल।
नये विकल्प तलाश लें,मन के छोड़ मलाल।
76
नारी अबला है नहीं, ज्ञान-बुद्धि की खान।
रत्न बने तुलसी यहाँ, पा रत्ना से ज्ञान।।