भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आजु दिन कान्ह आगमन के बधाए सुनि / पद्माकर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:16, 18 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आजु दिन कान्ह आगमन के बधाए सुनि ,
छाए मग फूलन सुहाए थल थल के ।
कहैँ पदमाकर त्योँ आरती उतारिबे को ,
थारन मे दीप हीरा हारन के छलके ।
कंचन के कलस भराए भूरि पन्नन के ,
ताने तुँग तोरन तहाँई झलाझल के ।
पौर के दुवारे तैँ लगाय केलि मँदिर लौ,
पदमिनि पांवडे पसारे मखमल के ।


पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।