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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] |संग्रह=हिम तरंगिनी / माखनलाल चतुर्वेदी~*~*~*~*~*~*~*~ }}{{KKCatKavita}}<poem>
आज नयन के बँगले में
 
संकेत पाहुने आये री सखि!
 
 
जी से उठे
कसक पर बैठे
और बेसुधी-
 
के बन घूमें
 
युगल-पलक
 
ले चितवन मीठी,
 
पथ-पद-चिह्न
 
चूम, पथ भूले!
 
दीठ डोरियों पर
 
माधव को
 
 
बार-बार मनुहार थकी मैं
 
पुतली पर बढ़ता-सा यौवन
 
ज्वार लुटा न निहार सकी मैं !
 
दोनों कारागृह पुतली के
 
सावन की झर लाये री सखि!
आज नयन के बँगले में
 
संकेत पाहुने आये री सखि !
</poem>
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