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आज फिर इक बार ग़म घर कर गया दिल शाद में / धर्वेन्द्र सिंह बेदार

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आज फिर इक बार ग़म घर कर गया दिल शाद में
आज फिर आंँसू छलक आए किसी की याद में

सिसकियों का शोर चाहे कितना भी पुर-ज़ोर हो
कौन सुनता है यहाँँ पर कहकहों के नाद में

ख़्वाब कामिल हों सभी सबके ज़रूरी है नहीं
ख़्वाब आंँखों में मगर रक्खो बड़ी तादाद में

आज तो बस तोड़ना है ज़िंदगी का हर ग़ुरूर
मौत से तो हम निपट लेंगे किसी दिन बाद में

जिस किसी की हो हुकूमत जिस किसी का राज़ हो
किसलिए डरना किसी से इस वतन आज़ाद में

दिल मेरा ख़ुश हो गया हज़रात सुनकर आपने
जब बजाईं तालियाँँ मेरे सुख़न की दाद में

एक दिन जाना सभी को छोड़कर दुनिया जहाँ
कोई पहले जाएगा तो कोई कुछ दिन बाद में