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आज फिर रोने को जी हो जैसे / मनचंदा बानी

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आज फिर रोने को जी हो जैसे
फिर कोई आस बंधी हो जैसे

शह्र में फिरता हूं तन्हा-तन्हा
आशना<ref> परिचित</ref> एक वही हो जैसे

हर ज़माने की सदा-ए-मातूब <ref>पीड़ित की आवाज़ </ref>
मेरे सीने से उठी हो जैसे

ख़ुश हुए तर्के-वफ़ा<ref>वफ़ा का त्याग </ref> कर के हम
अब मुक़द्दर में यही हो जैसे

इस तरह शब गये टूटी है उमीद
कोई दीवार गिरी हो जैसे

यास<ref>पीड़ा </ref> आलूद<ref>लिपटी </ref> है एक-एक घड़ी
ज़र्द<ref>पीली </ref> फूलों की लड़ी हो जैसे

मैं हूं और वादा-ए-फ़र्दा<ref>आने वाले समय का वादा </ref> तेरा
और इक उम्र पड़ी हो जैसे

बेकशिश <ref>बिना आकर्षण के </ref> है वो निगाहे-सद्लुत्फ़<ref>आनन्दकर दृष्टि </ref>
इक महब्बत की कमी हो जैसे

क्या अजब लम्हा-ए-ग़म गुज़रा है
उम्र इक बीत गयी हो जैसे

शब्दार्थ
<references/>