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"आज ये मन / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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आज ये आँखें
 
देखती रही राह तुम्हारी
 
पलकें मूँदकर डूबी रही सपनों में तुम्हारे
 
आज मेरे ये कान
 
तरस गए आहट तुम्हारी सुनने को
 
मीठी हँसी मीठे बोल तुम्हारे सुनने को
 
आज मेरा ये तन
 
अतृप्त सा तड़प गया
 
स्पर्श तुम्हारा पाने को
 
आज का ये दिन
 
सूना-सूना कार्तिक की लम्बी रात सा
 
जेठ की गर्मी और भादों की बरसात सा
 
आज ये मन
 
हो गया कितना विकल दूरी से तुम्हारी
 
तरसा कितना खातिर तुम्हारी
 
धोखा देकर छोड़ गया मेरा साथ
 
और साथ तुम्हारे हो गया
 
 
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11:15, 14 फ़रवरी 2018 का अवतरण

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