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"आज ये मन / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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एक माँ की विपदा कहे कैसे पत्थर करुण
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आज ये मन
जिसने अपने खो दिये दो लाल तरुण
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एक लाल सीमा पर शहीद हो गया
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तो दूजा आतंक की बलि चढ़ गया
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बेटी को हर लिया दहेज दानव ने
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अत्याचारी क्रूरता के आततायी तांडव ने
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घर छीन लिया भ्रष्टाचारी नौकरशाहों ने
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मेरे खेतों को हड़पा क्रूर अभिकर्ताओं ने
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विलाप करते सहस्रों थे स्वप्नों के पाश
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पर न रहा पाषाण-प्रभु तुम पर विश्वास
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अब तो काम की भी उम्र ना रही
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भिक्षा मांगने में भी लाज आ रही 
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तो फिर कह दो मैं क्या कर लूँ
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कहो तो अपने प्राण स्वयं ही हर लूँ
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अब तो विष भी है महँगा पर
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और है मेरी पहुँच से बाहर
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मन में है बड़ा ही आक्रोश
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नहीं होता सब्र ना ही सन्तोष
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तो फिर कह दे कैसे प्राणों का त्याग करूँ
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ओ पत्थर कुछ तो कह दे, कब देखूँगी मैं
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तुझ सोए हुए ‘पत्थर के आँसू’
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आज ये आँखें
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देखती रही राह तुम्हारी
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पलकें मूँदकर डूबी रही सपनों में तुम्हारे
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आज मेरे ये कान
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तरस गए आहट तुम्हारी सुनने को
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मीठी हँसी मीठे बोल तुम्हारे सुनने को
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आज मेरा ये तन
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अतृप्त सा तड़प गया
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स्पर्श तुम्हारा पाने को
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आज का ये दिन
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सूना-सूना कार्तिक की लम्बी रात सा
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जेठ की गर्मी और भादों की बरसात सा
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आज ये मन
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हो गया कितना विकल दूरी से तुम्हारी
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तरसा कितना खातिर तुम्हारी
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धोखा देकर छोड़ गया मेरा साथ
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और साथ तुम्हारे हो गया
 
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19:10, 12 फ़रवरी 2018 का अवतरण

आज ये मन

आज ये आँखें
देखती रही राह तुम्हारी
पलकें मूँदकर डूबी रही सपनों में तुम्हारे
आज मेरे ये कान
तरस गए आहट तुम्हारी सुनने को
मीठी हँसी मीठे बोल तुम्हारे सुनने को
आज मेरा ये तन
अतृप्त सा तड़प गया
स्पर्श तुम्हारा पाने को
आज का ये दिन
सूना-सूना कार्तिक की लम्बी रात सा
जेठ की गर्मी और भादों की बरसात सा
आज ये मन
हो गया कितना विकल दूरी से तुम्हारी
तरसा कितना खातिर तुम्हारी
धोखा देकर छोड़ गया मेरा साथ
और साथ तुम्हारे हो गया