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आतंकवाद / जयप्रकाश कर्दम

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मिथ्या है यह जगत
सत्य है केवल ब्रह्म
ईश्वर, अल्लाह या परम-आत्म
उसने बनायी है यह दुनियां
वही है सर्जक, पालक, संहारक
इस दुनियां का
प्रत्येक जीव में है उसी का अंश
उससे प्रथक नहीं है किसी का अस्तित्व
सब हैं उसके हाथ के खिलौने
या कठपुतलियां
नचाता है अपने इशारों पर
कराता है कर्म जैसा वह चाहे
क्या है इंसान का वजूद उसके आगे
कही करता है इंसान और उतना ही
जो चाहता या करवाता है
अल्लाह या भगवान
इंसान नहीं फोड़ता बम
नहीं करता हत्याएं अपनी इच्छा से
निमित्त मात्र है इंसान
ईश्वर या अल्लाह ही यह सब
करता-करवाता है
वही इंसान को इंसान से लड़ाता है
एक दूसरे का दुश्मन बनाता है
वह एक है या अनेक
वही है सबसे बड़ा मास्टर माइंड
उसी की कारस्तानियां हैं लाशों के ढेर
आतंक का सैलाब
मासूमों के खून से रंगे हैं उसके हाथ
दुनियां से हिंसा और आतंक मिटाना है
इसे रहने लायक बनाना है तो
हिंसा और आतंक की जड़ों को मिटाओ
ईश्वर को कैद में डालो
अल्लाह को फांसी पर लटकाओ।