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आती हूँ अब पास तुम्हारे / कविता वाचक्नवी

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आती हूँ अब पास तुम्हारे
[तेलुगु लोकगीत पर आधारित]

चंदा मेरे!
मिले राह में थे हम दोनों
जागा था
पलकों से पलकें मिलते ही
मन में अनुराग।
डरी हुई थी मैं
डरते तुम भी, सहमे थे,
घरवालों के भय के मारे
दूर यहाँ बरगद के नीचे
दोनों ने आ लिया सहारा
और तुम्हारे बाहुपाश का स्पर्श
मुझे कस कर बाँधे था,
तभी लगे हम दोनों रोने
पोखर-भर बरसे थे आँसू
इतना जल भर गया कि उस दिन
धान उग गया,
चावल के दानों से
अक्षत लेकर हमने ब्याह रचाया,
किंतु नहीं विधि को भाया वह
मिलन हमारा
पानी में गिर गई छिपकली
तभी कहीं से
अशुभ, अमंगल ने
दोनों को अलग कर दिया
मुझसे छीना तुमको
तुमसे जीवन छीना,
प्राण! तुम्हीं आधार रहे जब नहीं साथ में
कैसे अब जी पाऊँ मैं निष्प्राण अकेली,
आती हूँ अब पास
तुम्हारे प्रेमपाश में
फिर-फिर बँधने
काया का यह पिंजरा तजकर।