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आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज / गुलाब खंडेलवाल

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आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज
जिन्दगी, शीशा तेरा फूटा हुआ लगता है आज

हर नज़र खामोश अहि. हर घर से उठता है धुँआ
यह शहर का शहर ही लूटा हुआ लगता है आज

तुझसे आती है किसी जूड़े की खुशबू तो गुलाब!
हाथ से दामन मगर छूटा हुआ लगता है आज