भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपने शुभ लाभ लिक्खा था बही पर / रामकुमार कृषक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:54, 16 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामकुमार कृषक |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपने शुभ लाभ लिक्खा था बही पर,
लिख दिया किसने मगर घाटा उसी पर !

है कहीं कुछ तो ग़लत अब मानिए भी,
इक नज़र तो डालिए अपनी बदी पर !

आप में जो ख़ूबियाँ हैं ख़ूब हैं वो,
क्या कहें इस दौर की इस त्रासदी पर !

आपकी हर प्यास दुश्मन मछलियों की,
देखिए जाकर किसी सूखी नदी पर !

क्या उड़ेंगे लोग पत्थर हो गए जो,
और फिर अब आप भारी हैं सभी पर !