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"आप और घर पे हमारे, क्या खूब! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
 
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आप और घर पे हमारे, क्या ख़ूब!
 
दिन में उग आयें हैं तारे, क्या ख़ूब!
 
 
हमने सूरत भी न देखी उनकी
 
दिल में रहते हैं हमारे, क्या ख़ूब!
 
 
हम खड़े हैं लहर पे बुत की तरह
 
और बहते हैं किनारे, क्या ख़ूब!
 
 
आखिर आ ही गए हम आपके पास
 
एक तिनके के सहारे, क्या ख़ूब!
 
 
उनकी आँखों में खिल रहे थे गुलाब!
 
हमने काग़ज़ पे उतारे, क्या ख़ूब!
 
<poem>
 

07:57, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण