भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आप क्या रोशनी बो रहे थे/ सर्वत एम जमाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{


आप क्या रोशनी बो रहे थे
लोग बीनाइयां खो रहे थे

अब घुटन से परेशान क्यों हो
आज तक तो यही ढो रहे थे
 
आदमी भेड़िया तब हुआ जब
भेड़िये आदमी हो रहे थे

लोग शर्मिन्दा थे पिछली रुत पर
आप क्या सोच कर रो रहे थे

कौन तोड़े गुलामी की बेडी
सब के सब चैन से सो रहे थे

बहती गंगा पे ग़मगीन क्यों हैं
हाथ तो आप भी धो रहे थे

आदमी किस तरह हो सकेंगे
जानवर भी हमीं तो रहे थे