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"आप जो आए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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हृत्-तन्त्री पर
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बजा राग सुहाना  
 
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आपका आना ।
 
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प्यारे हैं रूप
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सर्दी की धूप ।
 
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मुझे न भाया  
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मैं लौट आया ।
 
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धर्म के खेल  
 
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धधकती आग में
 
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डालते तेल ।
 
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गंगा नहाए
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लाखों  बार फिर भी
 
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मैल न जाए ।
 
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09:51, 11 मई 2018 के समय का अवतरण


147
आप जो आए
मन-मरुभूमि में
बदरा छाए ।
148
हृत्-तन्त्री पर
बजा राग सुहाना
आपका आना ।
149
प्यारे हैं रूप
माँ,बेटी, बहिन
सर्दी की धूप ।
150
मुझे न भाया
चतुर व सयाना
मैं लौट आया ।
151
धर्म के खेल
धधकती आग में
डालते तेल ।
152
गंगा नहाए
लाखों बार फिर भी
मैल न जाए ।