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"आयामों के इन्द्रधनुष / रामस्वरूप परेश" के अवतरणों में अंतर

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द्वार-द्वार पर दीप जलाकर जग का तिमिर भगाने वाले  
 
द्वार-द्वार पर दीप जलाकर जग का तिमिर भगाने वाले  
 
बनकर स्वयं दीप जल जिससे हर मावस पूनम हो जाये |
 
बनकर स्वयं दीप जल जिससे हर मावस पूनम हो जाये |
                      [४]
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          [४]
 
मनुज  मनुज  को  नहीं  मानता  है |
 
मनुज  मनुज  को  नहीं  मानता  है |
 
ईमान  क्या  वह  नहीं  जानता  है |  
 
ईमान  क्या  वह  नहीं  जानता  है |  
 
किसी की विवशता पे  हंस  दो भले  
 
किसी की विवशता पे  हंस  दो भले  
 
गुजरती है जिस पर वही जानता है |
 
गुजरती है जिस पर वही जानता है |
                      [५]
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          [५]
 
मृदु  जुन्हाई रजत शर से प्राण-बाला तिलमिलाई |
 
मृदु  जुन्हाई रजत शर से प्राण-बाला तिलमिलाई |
 
हर विवश मुस्कान पर शत  वेदनाएं खिलखिलाई |
 
हर विवश मुस्कान पर शत  वेदनाएं खिलखिलाई |
 
नयन निर्झर में घुली हैं स्वप्न की छवियाँ मनोहर  
 
नयन निर्झर में घुली हैं स्वप्न की छवियाँ मनोहर  
 
ह्रदय-दर्पण में कभी जब सुधि तुम्हारी झिलमिलाई |   
 
ह्रदय-दर्पण में कभी जब सुधि तुम्हारी झिलमिलाई |   
                      [६]
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          [६]
 
कारवां की धूल पर हम शीश धुनते रह गए |
 
कारवां की धूल पर हम शीश धुनते रह गए |
 
हम तो अपनों की कमी का जाल बुनते रह गये |
 
हम तो अपनों की कमी का जाल बुनते रह गये |
 
आदमी के जनाजे में भी न हो सके शरीक  
 
आदमी के जनाजे में भी न हो सके शरीक  
 
अफ़सोस कि पत्थर के लिए फूल चुनते रह गये |
 
अफ़सोस कि पत्थर के लिए फूल चुनते रह गये |
                      [७]
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            [७]
 
जमाने से मिले अभिशाप कब वरदान बन जायेँ |
 
जमाने से मिले अभिशाप कब वरदान बन जायेँ |
 
न जाने कौन-सी पीड़ा मधुर मुस्कान बन जायेँ |
 
न जाने कौन-सी पीड़ा मधुर मुस्कान बन जायेँ |
 
अत: मैं हर गली की धूल को मस्तक नवाता हूँ  
 
अत: मैं हर गली की धूल को मस्तक नवाता हूँ  
 
न जाने कौन-सा रज-कण मेरा भगवान बन जायेँ |
 
न जाने कौन-सा रज-कण मेरा भगवान बन जायेँ |
                      [८]
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दर्द जागा तो गीतों से सुलाया न गया |
 
दर्द जागा तो गीतों से सुलाया न गया |
 
चाँद धरती पे इशारों  से बुलाया न गया |
 
चाँद धरती पे इशारों  से बुलाया न गया |
 
लाख कोशिश हुई सुधियों को भुलाने की  
 
लाख कोशिश हुई सुधियों को भुलाने की  
 
जब कोई याद  मुझे आया तो भुलाया न गया |
 
जब कोई याद  मुझे आया तो भुलाया न गया |
                      [९]
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इन्तजार का का मृदु क्षण मुझको पखवारे सा लगता है |
 
इन्तजार का का मृदु क्षण मुझको पखवारे सा लगता है |
 
हर दरवाजा मुझको तेरे दरवाजे-सा लगता है |
 
हर दरवाजा मुझको तेरे दरवाजे-सा लगता है |
 
सच कहता हूँ खाकर मैं सौगंध तुम्हारे अधरों की  
 
सच कहता हूँ खाकर मैं सौगंध तुम्हारे अधरों की  
 
बिना तुम्हारे सांस स्वयं का अंगारे-सा लगता है|
 
बिना तुम्हारे सांस स्वयं का अंगारे-सा लगता है|
                      [१०]
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अंगारों पर चला सदा मैं अंतर में मधुमास लिये |
 
अंगारों पर चला सदा मैं अंतर में मधुमास लिये |
 
जूझा हूँ पग-पग झंझा से कूलों का विश्वास लिये |
 
जूझा हूँ पग-पग झंझा से कूलों का विश्वास लिये |
 
तुम्ही चढ़ावोगे आंसू का अर्ध्य हमारे गीतों पर  
 
तुम्ही चढ़ावोगे आंसू का अर्ध्य हमारे गीतों पर  
 
इस कारण हँसता आया हूँ मैं जगती का उपहास लिये |
 
इस कारण हँसता आया हूँ मैं जगती का उपहास लिये |
                    [११]
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सांस वह जिसने समय को दी रवानी है |
 
सांस वह जिसने समय को दी रवानी है |
 
जो फिसलते को संभाले वह जवानी है |
 
जो फिसलते को संभाले वह जवानी है |
 
नींद क्यों आती नहीं बेचैन है मन  
 
नींद क्यों आती नहीं बेचैन है मन  
 
शायद किसी मनुज की आँख में पानी है |
 
शायद किसी मनुज की आँख में पानी है |
                    [१२]
+
            [१२]
 
हर आदमी को औरों  के लिये जीना भी नहीं आता है |
 
हर आदमी को औरों  के लिये जीना भी नहीं आता है |
 
हर सपन को साध का  जिल्द-सीना भी नहीं आता है |
 
हर सपन को साध का  जिल्द-सीना भी नहीं आता है |
 
अफसोस मुकद्दर ने सुराही पे सुराही दी उन्हें  
 
अफसोस मुकद्दर ने सुराही पे सुराही दी उन्हें  
महफ़िल में जिनको तमीज से पीना भी नहीं आता है |   
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महफ़िल में जिनको तमीज से पीना भी नहीं आता है |  
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            [१३]
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बदचलन ज़माने को ईमान से नफ़रत है |
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महल वालों को कुटी के गान से नफ़रत है |
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वह जन्नत भी जहन्नुम से बदतर है भाई
 +
जहाँ इन्सान को इन्सान से नफ़रत है |
 +
            [१४]
 +
जिन्दगी क्या चीज है यह गम बताता है |
 +
हर सपन की मौत पर मातम मनाता है |
 +
बस गई मौत के गाँव में ही जिन्दगी तो
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आज का इन्सान क्यों एटम बनाता है |
 +
            [१५]
 +
हिचकियाँ लेकर जहर पीता है क्यों |
 +
सांस की चादर को सीता है क्यों |
 +
मरता है यों कि मजबूर है लेकिन
 +
अचरज है आदमी जीता है क्यों |
 +
            [१६]
 +
कौन कहता है कि है इंसां फ़रिश्ता |
 +
बस छलावा मात्र है हर नाता रिश्ता |
 +
अब बताओ आदमी का मूल्य क्या है
 +
प्रस्तरों की भीड़ में इन्सान है सस्ता |
 +
            [१७]
 +
स्नेह जीवन एकता की दृढ़ कड़ी है |
 +
प्रगति का हर पथ परीक्षा की घडी है |
 +
राष्ट्र अर्चन में सभी सुख हैं समर्पित
 +
देश की मिट्टी सितारों से बड़ी है |
 +
            [१८]
 +
कारवाएं उम्मीद गया अश्के गुबार बाकी हैं |
 +
दिल की दरगाह में ख्वाबों के मज़ार बाकी हैं  |
 +
बहारों से कहो कि किसने बुलाया था तुम्हे
 +
अभी तो महकते गम के सदाबहार बाकी हैं  | 
 
   
 
   
 
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10:00, 29 अक्टूबर 2012 का अवतरण

                      [१]
मेरे माथे का हिम किरीट, ऊंचा नगराज हिमालय है |
हर प्रीत भरे उर का परिचय बस ताजमहल ही में लय है |
मेरी भृकुटि में महा प्रलय मेरी मुस्कानों में अमृत
मैं तो इस भारत की मांटी मेरा इतना सा परिचय है |
                      [२]
जब-जब स्वतन्त्रता के पट में कोई अंगार सजाता है |
शान्ति सुहागिन के कोई शोणित से हाथ रचाता है |
भिन्न- भिन्न हैं जाति धर्म पर जब स्वदेश पर संकट हो
मन्दिर बढ़कर मस्जिद के माथे पर तिलक लगाता है |
                      [३]
ऐसा गीत उचार की जिससे कुछ अँधियारा कम हो जाये |
ईश्वर की पाषाणी मूरत की भी आंखे नम हो जायें |
द्वार-द्वार पर दीप जलाकर जग का तिमिर भगाने वाले
बनकर स्वयं दीप जल जिससे हर मावस पूनम हो जाये |
           [४]
मनुज मनुज को नहीं मानता है |
ईमान क्या वह नहीं जानता है |
किसी की विवशता पे हंस दो भले
गुजरती है जिस पर वही जानता है |
           [५]
मृदु जुन्हाई रजत शर से प्राण-बाला तिलमिलाई |
हर विवश मुस्कान पर शत वेदनाएं खिलखिलाई |
नयन निर्झर में घुली हैं स्वप्न की छवियाँ मनोहर
ह्रदय-दर्पण में कभी जब सुधि तुम्हारी झिलमिलाई |
           [६]
कारवां की धूल पर हम शीश धुनते रह गए |
हम तो अपनों की कमी का जाल बुनते रह गये |
आदमी के जनाजे में भी न हो सके शरीक
अफ़सोस कि पत्थर के लिए फूल चुनते रह गये |
            [७]
जमाने से मिले अभिशाप कब वरदान बन जायेँ |
न जाने कौन-सी पीड़ा मधुर मुस्कान बन जायेँ |
अत: मैं हर गली की धूल को मस्तक नवाता हूँ
न जाने कौन-सा रज-कण मेरा भगवान बन जायेँ |
            [८]
दर्द जागा तो गीतों से सुलाया न गया |
चाँद धरती पे इशारों से बुलाया न गया |
लाख कोशिश हुई सुधियों को भुलाने की
जब कोई याद मुझे आया तो भुलाया न गया |
            [९]
इन्तजार का का मृदु क्षण मुझको पखवारे सा लगता है |
हर दरवाजा मुझको तेरे दरवाजे-सा लगता है |
सच कहता हूँ खाकर मैं सौगंध तुम्हारे अधरों की
बिना तुम्हारे सांस स्वयं का अंगारे-सा लगता है|
            [१०]
अंगारों पर चला सदा मैं अंतर में मधुमास लिये |
जूझा हूँ पग-पग झंझा से कूलों का विश्वास लिये |
तुम्ही चढ़ावोगे आंसू का अर्ध्य हमारे गीतों पर
इस कारण हँसता आया हूँ मैं जगती का उपहास लिये |
            [११]
सांस वह जिसने समय को दी रवानी है |
जो फिसलते को संभाले वह जवानी है |
नींद क्यों आती नहीं बेचैन है मन
शायद किसी मनुज की आँख में पानी है |
            [१२]
हर आदमी को औरों के लिये जीना भी नहीं आता है |
हर सपन को साध का जिल्द-सीना भी नहीं आता है |
अफसोस मुकद्दर ने सुराही पे सुराही दी उन्हें
महफ़िल में जिनको तमीज से पीना भी नहीं आता है |
             [१३]
बदचलन ज़माने को ईमान से नफ़रत है |
महल वालों को कुटी के गान से नफ़रत है |
वह जन्नत भी जहन्नुम से बदतर है भाई
जहाँ इन्सान को इन्सान से नफ़रत है |
            [१४]
जिन्दगी क्या चीज है यह गम बताता है |
हर सपन की मौत पर मातम मनाता है |
बस गई मौत के गाँव में ही जिन्दगी तो
आज का इन्सान क्यों एटम बनाता है |
            [१५]
हिचकियाँ लेकर जहर पीता है क्यों |
सांस की चादर को सीता है क्यों |
मरता है यों कि मजबूर है लेकिन
अचरज है आदमी जीता है क्यों |
            [१६]
कौन कहता है कि है इंसां फ़रिश्ता |
बस छलावा मात्र है हर नाता रिश्ता |
अब बताओ आदमी का मूल्य क्या है
प्रस्तरों की भीड़ में इन्सान है सस्ता |
            [१७]
स्नेह जीवन एकता की दृढ़ कड़ी है |
प्रगति का हर पथ परीक्षा की घडी है |
राष्ट्र अर्चन में सभी सुख हैं समर्पित
देश की मिट्टी सितारों से बड़ी है |
            [१८]
कारवाएं उम्मीद गया अश्के गुबार बाकी हैं |
दिल की दरगाह में ख्वाबों के मज़ार बाकी हैं |
बहारों से कहो कि किसने बुलाया था तुम्हे
अभी तो महकते गम के सदाबहार बाकी हैं |