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जी करता सूने होठों पर गाकर आज रुबाई लिख दूँ |
[३१]
मैं तुम्हारे प्यार का उपहार लेकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी मांग का अधिकार लेकर क्या करूँगा |
गाज से जो जल गई वीरान में वह डाल हूँ,अब
मैं तेरे मधुमास की मनुहार लेकर क्या करूंगा |
[३२]
गुलशन में बहारों की रात ठहर जायेगी |
पीर के सावन की बरसात ठहर जायेगी |
प्यार के दुल्हे को जरा सजने तो दो
चलती हुई उम्र की बारात ठहर जायेगी |
[३३]
कितने प्याले पी डाले कुछ लेखा है क्या |
अमृत था या थी वह सुरा कुछ देखा है क्या |
जल्दी इतनी करता है क्यों पीने में तू
पीने की सीमा पर भी कुछ रेखा है क्या |
 
[३१]
मैं तुम्हारे प्यार का उपहार लेकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी मांग का अधिकार लेकर क्या करूँगा |
गाज से जो जल गई वीरान में वह डाल हूँ,अब
मैं तेरे मधुमास की मनुहार लेकर क्या करूंगा |
[३२]
गुलशन में बहारों की रात ठहर जायेगी |
पीर के सावन की बरसात ठहर जायेगी |
प्यार के दुल्हे को जरा सजने तो दो
चलती हुई उम्र की बारात ठहर जायेगी |
[३३]
कितने प्याले पी डाले कुछ लेखा है क्या |
अमृत था या थी वह सुरा कुछ देखा है क्या |
जल्दी इतनी करता है क्यों पीने में तू
पीने की सीमा पर भी कुछ रेखा है क्या |
 
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