"आयी हिमगिरि लाँघ लुटेरों की टोली फुफुकारती / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | आयी हिमगिरि लाँघ लुटेरों की टोली | + | आयी हिमगिरि लाँघ लुटेरों की टोली फुफकारती |
चालीस कोटि सुतों की जननी खड़ी अधीर पुकारती | चालीस कोटि सुतों की जननी खड़ी अधीर पुकारती | ||
आज हिमालय के शिखरों से स्वतंत्रता ललकारती | आज हिमालय के शिखरों से स्वतंत्रता ललकारती | ||
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अत्याचारी से दुर्बल को, शरणागत को ओट दी | अत्याचारी से दुर्बल को, शरणागत को ओट दी | ||
साक्षी है इतिहास, न हमने कभी किसी पर चोट की | साक्षी है इतिहास, न हमने कभी किसी पर चोट की | ||
− | देखा किये ध्वंस तिब्बत का मन में बड़ी कचोट थी | + | देखा किये ध्वंस तिब्बत का, मन में बड़ी कचोट थी |
आज पाप का घट आ पहुँचा, सीमा पर विस्फोट की | आज पाप का घट आ पहुँचा, सीमा पर विस्फोट की | ||
− | वही रक्त की बूँद-बूँद बन | + | वही रक्त की बूँद-बूँद बन हनूमान हुंकारती |
− | + | साठ हज़ार सगर-पुत्रों की सैन्य जुटी तो क्या हुआ! | |
भूल गये जब खुली कपिल मुनि की त्रिकुटी तो क्या हुआ! | भूल गये जब खुली कपिल मुनि की त्रिकुटी तो क्या हुआ! | ||
रेखा-रक्षित लुटी राम की पर्णकुटी तो क्या हुआ! | रेखा-रक्षित लुटी राम की पर्णकुटी तो क्या हुआ! |
03:26, 21 जुलाई 2011 का अवतरण
आयी हिमगिरि लाँघ लुटेरों की टोली फुफकारती
चालीस कोटि सुतों की जननी खड़ी अधीर पुकारती
आज हिमालय के शिखरों से स्वतंत्रता ललकारती
शीश चढ़ा दे जो स्वदेश पर वही उतारे आरती
. . .
अत्याचारी से दुर्बल को, शरणागत को ओट दी
साक्षी है इतिहास, न हमने कभी किसी पर चोट की
देखा किये ध्वंस तिब्बत का, मन में बड़ी कचोट थी
आज पाप का घट आ पहुँचा, सीमा पर विस्फोट की
वही रक्त की बूँद-बूँद बन हनूमान हुंकारती
साठ हज़ार सगर-पुत्रों की सैन्य जुटी तो क्या हुआ!
भूल गये जब खुली कपिल मुनि की त्रिकुटी तो क्या हुआ!
रेखा-रक्षित लुटी राम की पर्णकुटी तो क्या हुआ!
पूछो स्मर से --'शांत त्रिनेत्र-समाधि छुटी तो क्या हुआ!
बस मुट्ठी भर राख दिखी थी दक्षिण-पवन बुहारती
आज हिमालय के शिखरों से स्वतंत्रता ललकारती
शीश चढ़ा दे जो स्वदेश पर वही उतारे आरती