भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरज़ू / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 23 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर }...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितना अच्छा होगा

जब दुनिया में सिर्फ़ रहेंगे
ईश्वर से अनभिज्ञ,
प्राणी-प्राणी प्रेम-प्रतिज्ञ !

फिर
ना मंदिर होंगे, ना मसजिद
ना गुरुद्वारे, ना गिरजाघर !

कितनी होगी हैरत !
मारेगा कौन किसे ?
फिर कौन करेगा नफ़रत ?
सिर्फ़ मुहब्बत होगी,
होगी गै़रत !
सब ‘तनखैया’ होंगे,
भैया-भैया होंगे !