भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरती 1 / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरनी प्रभु की, आरती, करिये मन चित लाय।
जरा मरण दूनो छूटै, आवागवन नशाय॥1॥

धरनी प्रभु की आरती, करिये बार बार।
ऊठत बैठत सोवते, अह-निशि साँझ सकार॥2॥

पाँच तत्व गुण तीन ले, और प्रकृति पच्चीस।
धरनी आरति वारिके, वार जहाँ जगदीश॥3॥

बिना थार को थार करि, बिना दीपको दीप।
बिना हाथ धरि फोरना, धरनी राम-समीप॥4॥

साँझ समय कर जोरिके, उभय धरी यश गाव।
धरनी सदा सुचित होइ, हरि-भक्तन शिर नाव॥5॥