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[[Category: ताँका]]
<poem>
129
मन उन्मन
'''तरसे आलिंगन'''
अब चले भी आओ
परदेसी हो गए !!
230
आकर लौटे,
बन्द द्वार था मिला
दर्द मिले मुफ़्त में
प्यार माँगे न मिले।
331
टूटते कहाँ
लौहपाश जकड़े