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"आलिंगन में प्रिय/ कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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1
 
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कभी पसारो
 
कभी पसारो
बाँहे नभ -सी तुम
+
बाँहे नभ सी तुम
 
मुझे भर लो
 
मुझे भर लो
आलिंगन में प्रिय !
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आलिंगन में प्रिय
अवसाद हर लो।
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अवसाद हर लो
 
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उगता रवि
 
उगता रवि
 
धरा का माथा चूमे
 
धरा का माथा चूमे
खग-संगीत
+
खग - संगीत
 
मिले ज्यों मनमीत
 
मिले ज्यों मनमीत
दिग्-दिगन्त झूमे।
+
दिग-दिगन्त झूमे
 +
3
 +
ताप-संताप
 +
मिटे हिय के सब
 +
प्रिय -दर्शन
 +
प्रफुल्ल तन-मन
 +
ज्यों खिले उपवन
 +
4
 +
आँखें लिखतीँ
 +
मन पर अक्षर
 +
प्रेम-पातियाँ
 +
उन अध्यायों पर
 +
मैं करूँ हस्ताक्षर।
 +
5
 +
मन की खूँटी
 +
झूलता फूलदान
 +
तेरी प्रीत का
 +
प्रिय फूल सजाऊँ
 +
नित खिले मुस्कान।
 +
6
 +
झूलती प्रीत
 +
मन के छज्जे पर
 +
बचपन की
 +
सुन्दर गमले-सी
 +
खिलें नए सुमन ।
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7
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बदले रंग
 +
मन की दीवारों के,
 +
नहीं बदली
 +
उस पर चिपकी
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तेरी तस्वीर कभी
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8
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मन का कोना
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उदीप्त-सुवासित
 +
इत्र नहीं, कपूर;
 +
पूजा के दीपक-सा
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प्रिय प्रेम तुम्हारा।
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14:29, 7 फ़रवरी 2018 का अवतरण

1
कभी पसारो
बाँहे नभ सी तुम
मुझे भर लो
आलिंगन में प्रिय
अवसाद हर लो
2
उगता रवि
धरा का माथा चूमे
खग - संगीत
मिले ज्यों मनमीत
दिग-दिगन्त झूमे
3
ताप-संताप
मिटे हिय के सब
प्रिय -दर्शन
प्रफुल्ल तन-मन
ज्यों खिले उपवन
4
आँखें लिखतीँ
मन पर अक्षर
प्रेम-पातियाँ
उन अध्यायों पर
मैं करूँ हस्ताक्षर।
5
मन की खूँटी
झूलता फूलदान
तेरी प्रीत का
प्रिय फूल सजाऊँ
नित खिले मुस्कान।
6
 झूलती प्रीत
मन के छज्जे पर
बचपन की
सुन्दर गमले-सी
खिलें नए सुमन ।
7
बदले रंग
मन की दीवारों के,
नहीं बदली
उस पर चिपकी
तेरी तस्वीर कभी
8
 मन का कोना
उदीप्त-सुवासित
इत्र नहीं, कपूर;
पूजा के दीपक-सा
प्रिय प्रेम तुम्हारा।
-0-