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कभी हल नहीं होते
लय-भंग मानस की विछिन्नता
संत्रास की आपदा से स्तब्ध
अवसन्न,तिर्यक श्वाँसें
ऊर्ध्वगामी गति के तल में
बचाए रखती हैं जिजीविषा