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आशा-नदी / सुन्दरानन्द बाँडा

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आशा-नदी
(वि.सं. १८३५-५० बीच )


साहेब अर्जि सरण् परोस् मनमहाँ दुःखी गरिप् दीन हुँ
ग्राहारुप दरिद्सैं मकन ता उद्धार्गरीबक्सन्या ।।
जस्तै श्रीहरिले गजेन्द्रवरलाई ग्राहा छुटाइदिया
दुःखी सो गज ता चतुर्भुज भई वैकुण्ठवासी भयो ।।
आसा कोही नदी थीई सभमहाँ अत्यँत ठूलो वडो
पानी हो तसमा मनोरथ सर्भ तेही नपुग्दा सुक्यो ।।
तस्माहाँ म पनी थिञा विधिवसात्माछो भई हे प्रभो
पानी शुष्क हुँदा जिवै चलिगयो बक्सीस अर्ती हवस् ।।

‘वीरकालीन कविता‘ बाट साभार