"आशा कम विश्वास बहुत है / बलबीर सिंह 'रंग'" के अवतरणों में अंतर
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सहसा भूली याद तुम्हारी उर में आग लगा जाती है | सहसा भूली याद तुम्हारी उर में आग लगा जाती है | ||
− | + | विरह-ताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती है, | |
− | मुझको आग और पानी | + | मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है |
− | + | जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है । | |
− | धन्य धन्य मेरी लघुता को, जिसने तुम्हें महान बनाया, | + | धन्य-धन्य मेरी लघुता को, जिसने तुम्हें महान बनाया, |
धन्य तुम्हारी स्नेह-कृपणता, जिसने मुझे उदार बनाया, | धन्य तुम्हारी स्नेह-कृपणता, जिसने मुझे उदार बनाया, | ||
मेरी अन्धभक्ति को केवल इतना मन्द प्रकाश बहुत है | मेरी अन्धभक्ति को केवल इतना मन्द प्रकाश बहुत है | ||
− | + | जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है । | |
− | अगणित शलभों के दल के दल एक ज्योति पर जल जल मरते | + | अगणित शलभों के दल के दल एक ज्योति पर जल-जल मरते |
− | एक | + | एक बूँद की अभिलाषा में कोटि-कोटि चातक तप करते, |
शशि के पास सुधा थोड़ी है पर चकोर की प्यास बहुत है | शशि के पास सुधा थोड़ी है पर चकोर की प्यास बहुत है | ||
− | + | जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है । | |
− | + | मैंने आँखें खोल देख ली है नादानी उन्मादों की | |
− | + | मैंने सुनी और समझी है कठिन कहानी अवसादों की, | |
− | + | फिर भी जीवन के पृष्ठों में पढ़ने को इतिहास बहुत है | |
− | + | जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है । | |
− | ओ ! जीवन के थके पखेरू, | + | ओ ! जीवन के थके पखेरू, बढ़े चलो हिम्मत मत हारो, |
पंखों में भविष्य बंदी है मत अतीत की ओर निहारो, | पंखों में भविष्य बंदी है मत अतीत की ओर निहारो, | ||
क्या चिंता धरती यदि छूटी उड़ने को आकाश बहुत है | क्या चिंता धरती यदि छूटी उड़ने को आकाश बहुत है | ||
− | + | जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है । | |
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12:45, 4 मई 2011 के समय का अवतरण
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।
सहसा भूली याद तुम्हारी उर में आग लगा जाती है
विरह-ताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती है,
मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।
धन्य-धन्य मेरी लघुता को, जिसने तुम्हें महान बनाया,
धन्य तुम्हारी स्नेह-कृपणता, जिसने मुझे उदार बनाया,
मेरी अन्धभक्ति को केवल इतना मन्द प्रकाश बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।
अगणित शलभों के दल के दल एक ज्योति पर जल-जल मरते
एक बूँद की अभिलाषा में कोटि-कोटि चातक तप करते,
शशि के पास सुधा थोड़ी है पर चकोर की प्यास बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।
मैंने आँखें खोल देख ली है नादानी उन्मादों की
मैंने सुनी और समझी है कठिन कहानी अवसादों की,
फिर भी जीवन के पृष्ठों में पढ़ने को इतिहास बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।
ओ ! जीवन के थके पखेरू, बढ़े चलो हिम्मत मत हारो,
पंखों में भविष्य बंदी है मत अतीत की ओर निहारो,
क्या चिंता धरती यदि छूटी उड़ने को आकाश बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।