भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
 
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
 
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर होने तक!
 
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर होने तक!
 +
 +
दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग
 +
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर होने तक!
  
 
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब‌
 
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब‌
पंक्ति 14: पंक्ति 17:
 
हमने माना कि तगाफुल ना करोगे लेकिन‌
 
हमने माना कि तगाफुल ना करोगे लेकिन‌
 
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!
 
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!
 +
 +
परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
 +
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक!
 +
 +
यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल
 +
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर होने तक!
 +
 +
गम-ए-हस्ती का "असद"  किससे हो जुज-मर्ग-इलाज
 +
शमा हर हाल में जलती है सहर होने तक!
 +
 
</poem>
 
</poem>

16:45, 9 जुलाई 2010 का अवतरण

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर होने तक!

दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर होने तक!

आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब‌
दिल का क्या रंग करूं खून‍-ए-जिगर होने तक!

हमने माना कि तगाफुल ना करोगे लेकिन‌
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!

परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक!

यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर होने तक!

गम-ए-हस्ती का "असद" किससे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर हाल में जलती है सहर होने तक!