"इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
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इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी | इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी | ||
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छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी | छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी | ||
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दर्द कई वो देता था, रखता था उसको धोखे में | दर्द कई वो देता था, रखता था उसको धोखे में | ||
जितने पल रुकता था आकर, वो उस में सिमटी रहती थी | जितने पल रुकता था आकर, वो उस में सिमटी रहती थी | ||
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इक दिन ऐसा भी आया, वो आया पर दर नहीं खुला | इक दिन ऐसा भी आया, वो आया पर दर नहीं खुला | ||
दरवाज़े पर हँसता था जो, इक चेहरा उस को नहीं मिला | दरवाज़े पर हँसता था जो, इक चेहरा उस को नहीं मिला | ||
− | आँसू के | + | आँसू के हर्फ़ वहाँ थे, और था वफ़ा का किस्सा भी |
तब जान गये आख़िर, सब कैसे वो टूटी, कहाँ मिटी | तब जान गये आख़िर, सब कैसे वो टूटी, कहाँ मिटी | ||
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− | बाद उसके | + | बाद उसके ख़त भी मिले, जिनमें कई प्यार की बातें थी |
सौगातें थी पाक दुआ की, भेजी चाँदनी रातें थी | सौगातें थी पाक दुआ की, भेजी चाँदनी रातें थी | ||
− | लिखा था उसने, सम्हल के रहना,इतना भी मत गुस्सा करना | + | लिखा था उसने, सम्हल के रहना, इतना भी मत गुस्सा करना |
− | अब और कोई न सीखेगा, तुम से जीना, तुम पर | + | अब और कोई न सीखेगा, तुम से जीना, तुम पर मरना |
अब वो पागल लड़की नहीं रही, जो तुम को खूब समझती थी | अब वो पागल लड़की नहीं रही, जो तुम को खूब समझती थी | ||
हर गुस्से को हर चुप को, आसानी से जो पढ़ती थी | हर गुस्से को हर चुप को, आसानी से जो पढ़ती थी |
21:43, 21 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी
बारिश सा शोर न था उसमें, सागर की तरह वो बहती थी
कोई उस को पढ़ न पाया, न कोई उसको समझा तब
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
शख़्स जो अक़्सर दिखता था, उस दिल के झरोखे में
दर्द कई वो देता था, रखता था उसको धोखे में
जितने पल रुकता था आकर, वो उस में सिमटी रहती थी
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
इक दिन ऐसा भी आया, वो आया पर दर नहीं खुला
दरवाज़े पर हँसता था जो, इक चेहरा उस को नहीं मिला
आँसू के हर्फ़ वहाँ थे, और था वफ़ा का किस्सा भी
तब जान गये आख़िर, सब कैसे वो टूटी, कहाँ मिटी
समझा तब लोगों ने उसको, कैसे वो ताने सहती थी
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
बाद उसके ख़त भी मिले, जिनमें कई प्यार की बातें थी
सौगातें थी पाक दुआ की, भेजी चाँदनी रातें थी
लिखा था उसने, सम्हल के रहना, इतना भी मत गुस्सा करना
अब और कोई न सीखेगा, तुम से जीना, तुम पर मरना
अब वो पागल लड़की नहीं रही, जो तुम को खूब समझती थी
हर गुस्से को हर चुप को, आसानी से जो पढ़ती थी
समझा वो भी अब जाकर, क्या उसकी आँखें कहती थी
था प्यार बला का उससे ही, वो जिसके ताने सहती थी
इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी